हिमाचल देवभूमि होने के साथ-साथ अपनी कला-कृतियों आदि से भी जाना जाता है। हिमाचल में जहां पहाड़ी एक राजकीय बोली मानी जाती हैं तो वहीं हिमाचल की ऐसी चीजें भी हैं जो कि पूरे देश में मशहूर हैं और सिर्फ हिमाचल में ही बनाई और पाई जाती हैं। इन चीजों में मुख्य रूप से कुल्लू शॉल और कुल्लू टोपी को रखा जाता है। हालांकि, हिमाचल में मिट्टी के बरतन आदि जैसी कई और चीजें भी मशहूर हैं लेकिन कुल्लू शॉल और टोपी की अपनी मुख्यता है। तो आज हम बात करेंगे हिमाचली टोपी की…
जी हां, अमूमन कुल्लूवी टोपी को हिमाचली को टोपी के नाम से जाना जाता है। लेकिन, इन टोपियों को अब एरियों के हिसाब से अलग-अलग जगह के लिए फिट कर दिया गया है। कुल्लूवी टोपी स्लेटी रंग के ऊनी कपड़े पर रंग बिरंगी सुनहरे रंग की वी व डब्लू जैसी डिजाइन वाली ऊन की कढ़ाई वाली होती है। इस टोपी को कुल्लूवी टोपी और पूर्व में हिमाचली टोपी का एकमात्र दर्जा था।
बढ़ते समय के साथ टोपियों के अलग-अलग डिजाइन आने लगे और इन्हें एरिया की भाषाओं के अनुसार फिट कर दिया गया। अब कुल्लूवी टोपी समेत कुल हिमाचल चार टोपियों के अलग-अलग डिजाइन आते हैं। जो कि इस प्रकार हैं…
- कुल्लूवी टोपी रंग-बिरंगे अंदाज में ऊन के धागे से बुनी हुई वी और डब्लयू शेप में होती है।
- शिमला और किन्नौरी टोपी ऊन के कपड़े में हरे रंग के बैलवेट कपड़े में होती है और ऊन का रंग हल्का सुनहरा या सलेटी होता है।
- हमीरपुरी और मंडी टोपी ऊन के कपड़े में लाल या मैरून रंग के बैलवेट कपड़े में होती है और ऊन का रंग चटकीला सुनहरा होता है।
- इसके अलावा चंबा और कांगड़ी टोपी भी कुल्लू की तरह होती है लेकिन उसमें व और डब्लयू के डिजाइन थोड़े पतले होते हैं और उसमें ऊन की रंग सुनहरा होता है।
इन चारों अलग-अलग टोपियों के माध्यम से अलग-अलग जगहों के लोगों का भी पता लगाया जा सकता है। टोपियों के साथ-साथ लोग जैकेट आदि भी ऊन से बनाते हैं। कहा जाता है कि ऊन से बुनी हुई यह जैकेटें सर्दियों के मौसम में बाजारी चीजों से शरीर को अधिक गर्म रखती हैं। हर वर्ष हजारों-लाखों सैलानी हिमाचल आते हैं इन टोपियों की खरीदारी कर अपने शहरों की ओर लौट जाते हैं।
हिमाचल की इन टोपियों को अब तो राजनीतिक दलों ने अपना-अपना रंग भी देना शुरू कर दिया है। वीरभद्र सेना ऊर्फ कांग्रेस हरी टोपी के नाम जाने जाते हैं और धूमल सेना ऊर्फ बीजेपी लाल या मैरून टोपी से जाने जाते हैं।