मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने हिमाचल पर बढ़ रहे कर्ज का ठीकरा तो पिछली कांग्रेस सरकारों पर फोड़ दिया, आंकड़ों पर नजर डालें तो कहानी कुछ और ही सामने आती है। चाहे सरकार भाजपा की हो या फिर कांग्रेस की कर्ज के मामले में दोनों ने प्रदेश की जनता पर बोझ ही डाला है।
प्रदेश में कर्ज लेने का सिलसिला 1992 से शुरू हुआ। प्रदेश पर इससे पहले नाम मात्र की देनदारी थी, लेकिन एक बार कर्ज चक्र जब शुरू हुआ तो 2012 में ये बढ़कर 28,760 करोड़ रुपये पर जा पहुंचा। यानि वीरभद्र सिंह की पिछली सरकार को ये सौगात प्रेम कुमार धूमल सरकार से मिली। इनकी गलतियों से सीखने की जगह वीरभद्र सरकार ने अपने कार्यकाल में 19,146 करोड़ का कर्ज लेकर प्रदेश के ऊपर 47,906 करोड़ की देनदारी मढ़ दी।
प्रदेश ने भाजपा को फिर कमान सौंपी जिससे वे इस कर्ज के चक्र को खत्म कर सके, लेकिन पुरानी सरकारों के नक्शे कदमों पर चलते हुए जयराम सरकार पिछले चार सालों में ही 17,000 करोड़ से ज्यादा का कर्ज ले चुकी है। इस समय प्रदेश पर 65 ,000 करोड़ का बोझ हो चुका है। पिछले चार महीनों में ही जयराम सरकार ने 4,000 करोड़ का कर्ज लिया है। दिसंबर में 1000 करोड़ रुपये, नवंबर में 2,000 करोड़ और अगस्त में 1,000 करोड़ रुपये की अधिसूचनाएं जारी की गई हैं।
यही कारण है कि 2019-20 में कुल राजकोषीय देनदारी-सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) अनुपात का 37.60 प्रतिशत हो गई थी अब ये उससे भी ज्यादा बढ़ गई है।
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