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सावधान! LED लाइट्स से डैमेज हो सकती हैं आंखें, इन गंभीर बीमारियों का भी बढ़ा खतरा

समाचार फर्स्ट डेस्क |

बिजली और पैसे बचाने के चक्कर में आजकल लोग धड़ल्ले से एलईडी लाइट्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह हल्की नीली रौशनी धीरे-धीरे आपको बीमार कर रही है। एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि इससे आपकी आंखें डैमेज हो सकती हैं। इतना ही नहीं पहले भी कई रिसर्च में यह खुलासा हो चुका है कि इससे कैंसर, डायबिटीज, डिप्रेशन जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का भी खतरा होता है।

फ्रांस की सरकारी स्वास्थ्य निगरानी संस्थान ने इस सप्ताह कहा है कि एलईडी लाइट की ‘नीली रोशनी’ से आंख के रेटीना को नुकसान हो सकता है और प्राकृतिक रूप से सोने की प्रक्रिया बाधित हो सकती है। फ्रांसीसी एजेंसी खाद्य, पर्यावरण और व्यावसायिक स्वास्थ्य तथा सुरक्षा (एएनएसईएस) ने एक बयान में चेतावनी दी है कि नये तथ्य पहले की चिंताओं की पुष्टि करते हैं कि ‘‘एक तीव्र और शक्तिशाली (एलईडी) प्रकाश ‘फोटो-टॉक्सिक’ होता है और यह रेटिना की कोशिकाओं को कभी सही नहीं होने वाली हानि पहुंचा सकता है तथा दृष्टि की तीक्ष्णता को कम कर सकता है।’’

ब्रेस्ट और प्रोस्टेट कैंसर का खतरा

इससे पहले ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटेर और बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ (आईएसग्लोबल) भी एलईडी के नुकसान को लेकर रिसर्च कर चुकी है। पिछले साल मैड्रिड और बार्सिलोना में 4,000 लोगों पर किए गए एक अध्ययन में पाया कि जो लोग लेड की रोशनी में ज्यादा रहते हैं, उन्हें ऐसी रोशनी में कम रहने वालों की तुलना में स्तन और प्रोस्टेट कैंसर का खतरा डेढ़ गुना बढ़ जाता है।

डायबीटीज और डिप्रेशन का भी डर

साइंस अडवांसेज जर्नल में प्रकाशित एक शोध जो कि सैटेलाइट डेटा पर आधारित था, इसके मुताबिक पृथ्वी की रातें रोशन हो रही हैं साथ ही 2012 से 2016 के बीच घरों के बाहर ऑर्टिफिशियल लाइट 2.2 फीसदी बढ़ गई है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह एक समस्या है क्योंकि रात की रोशनी से बॉडी क्लॉक डिस्टर्ब हो जाती है और कैंसर, डायबीटीज और डिप्रेशन का खतरा बढ़ जाता है। जानवरों के लिए भी ये लाइट्स नुकसानदायक होती हैं।

चीन के बल्ब सबसे ज्यादा हानिकारक

चीन में बने एलईडी बल्ब सबसे ज्यादा हानिकारक हैं, क्योंकि इनके उत्पादन में किसी प्रकार के मानकों का ध्यान नहीं रखा जाता है। इससे सरकार को टैक्स भी नहीं मिलता है। सर्वे में पता चला है कि 48 फीसदी बल्ब में बनाने वाली कंपनी का पता नहीं था, तो 31 फीसदी में बल्ब बनाने वाली कंपनी का नाम ही नहीं था।