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देवभूमि की रहस्यमयी साफ पानी वाली झील, जहां जाकर कोई वापिस नहीं लौटता

देवभूमि हिमाचल अपने अंदर कई रहस्यों को समेटे हुए है. जहां साक्षात चमत्कार नजर आते हैं. ऐसी ही रहस्यमयी व चमत्कारिक झील के बारे में आपको बताते है. जो शोजा के पास मौजूद है. जिसे “सरयोलसर झील” के नाम से जानी जाती है.

 

यह एक छोटी सी सुंदर झील है. जो प्रदेश के खूबसूरत हिल स्टेशन शोजा में जलोड़ी से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. समुद्रतल से लगभग 10500 फीट की ऊंचाई पर मौजूद सरयोलसर झील एक किलोमीटर की परिधि में फैली हुई है.

 

सरयोलसर झील का पानी क्रिस्टल की तरह एकदम साफ है. इस झील की खासियत ये है कि झील के पानी में आपको जरा भी कूड़ा करकट नजर नहीं आएगा. इस झील को रंग बदलने वाली झील भी कहा जाता है. दरअसल, जब मौसम खराब होता है या आसमान में बादल छाए हुए होते हैं, तो झील का रंग हल्का काला हो जाता है, जबकि जब आसमान साफ होता है. तो झील शीशे की तरह साफ और चमकदार होती है.

 

सिरयोलसर झील की सफाई का कारण चिड़िया को माना जाता है. जो पानी में तिनका तक गिरने नही देती है. कहा जाता है कि झील में एक तिनका भी गिरता है तो बाहर बैठी नन्ही चिड़या झट से उठाकर उसे बाहर फेंक देती है.नन्ही आभी के नाम से मशहूर इस चिड़िया ने सदियों से झील का सफाई का जिम्मा संभाला हुआ है. ये चिड़िया आम लोगों को कम ही नजर आती है. स्थानीय लोगों का दावा है कि आभी चिड़िया की किस्म केवल सिरयोलसर में ही पाई जाती है.

 

सरयोलसर झील के निकट ही “देवी बूढ़ी नागिन” का एक मंदिर भी है.भक्तों का विश्वास है कि इस झील में एक बूढ़ी नागिन वास करती हैं. स्थानीय लोग बूढी नागिन को इस क्षेत्र का सरंक्षक मानते हैं. यहां हर साल बीस से तीस क्विंटल घी का चढ़ावा आता है. झील के बारे में एक मान्यता भी है कि जो भी इस झील में जाता है वह लौटकर वापस कभी नहीं आता है. इस झील में जाने पर रोक लगी हुई है. माना जाता है कि महाभारत काल के दौरान पांडवों ने यहां काफी समय व्यतीत किया था. सर्दियों के मौसम में यहां भारी मात्रा में बर्फबारी होती है.

 

जलोड़ी पास से लगभग 5 किलोमीटर की पैदल दूरी तय कर सरयोलसर झील पहुंच सकते हैं. शोजा पहुंचने के लिए कुल्लू से सीधी बस सेवा उपलब्ध है.कुल्लू हिमाचल प्रदेश राज्य परिवहन निगम की बस सेवाओं के माध्यम से प्रदेश और कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है.

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