हिमाचल प्रदेश में देवभूमि के साथ एक पहाड़ी राज्य हैं। यहां पहाड़ों पर कई जड़ी बूटियां तो हैं ही लेकिन इसी के साथ कई ऐसी चीज़ें भी मिल जाती हैं जिनके लिए शहरों में लोगों को काफी मशक्कत करनी पड़ती हैं। ऐसी ही एक कचनार का पेड़ जिसे हिमाचली भाषा में कराले भी कहते हैं। कचनार उर्फ कराले एक प्रकार की औषधि है जो हिमाचल प्रदेश के निचले क्षेत्रों में अधिकतर जगहों पर पाई जाती है।
हर साल फरवरी माह के बाद गर्मियों में इनका सीज़न शुरू होता है जो कुछ दो चार महीनों में बंद भी हो जाता है। कचनार का पेड़ पूरी तरह फूलों से लद जाता है । इसके फूल, पत्तियां, तना, और जड़ यानी सभी चीजें किसी न किसी रूप में इस्तेमाल की जा सकती हैं। दावा है कि ये पेड़ एक तरह से बीमारी का निराकरण करने में बेहद लाभकारी है। इसकी कई प्रजातियां होती है, इसमें गुलाबी कचनार बेहद लाभकारी होता है।
पुराने बुजुर्गों की मानें तो कचनार के फूल और कलियां वातरोग, जोड़ों के दर्द के लिए विशेष लाभकारी होती है। इसकी कलियों की सब्जी का रायता बड़े ही चाव से खाया जाता है। आमतौर पर इसकी कलियों की सब्जी बनाई जाती है साथ ही इसके फूलों का रायता बनाया जाता है, जो खाने में स्वादिष्ट होता है। यह बात बिल्कुल सत्य है कि अगर कचनार की विशेषताएं लोगो को पता चल जाएं तो आम तौर पर जंगली इलाकों में मिल जाने वाला ये वृक्ष दुर्लभ की श्रेणी में आ जाएगा।
क्या कहती हैं एएमओ डॉ. हीना बत्ता
आर्युवेदिक मेडिकल ऑफिसर डॉ. हीना बत्ता ने दैनिक अखबार को बताया कि कचनार की छाल को शरीर के किसी भी हिस्से में बनी गांठ को गलाने के लिए इस्तेमाल में लिया जाता है । वहीं कचनार के फूलों को शहद के साथ सेवन करने से औरतों की महामारी को नियमित करने में मदद मिलती है और इसके फूलों के पाउडर को बाबासीर बीमारी से पीड़ित मरीजों को दिया जाता है । इसके अलावा रक्त विकार व त्वचा रोग जैसे- दाद- खाज- खुजली, एक्जीमा, फोड़े- फुंसी आदि में भी इसकी छाल बेहद लाभकारी है ।
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