तरुण श्रीधर।
बजट के समाचारों के बीच मोटे शब्दों में पढ़ा कि 3768 करोड़ का बजट डिजिटल जनगणना के लिए होगा। पहली बार देश में डिजिटल जनगणना होगी। इस बात से अधिकतर लोग परिचित हैं कि हर दस वर्ष बाद जनगणना की जाती है पर शायद कम ही यह जानते होंगे, विशेषत: शहरी निवासी, कि देश में पशुगणना भी नियमित रूप से होती है, और यह हर पांच साल बाद की जाती है।
2019 में भारत की जनसंख्या अनुमानित थी 136.64 करोड़ और इसी वर्ष की गई पशुगणना अनुसार देश का कुल पशुधन है 138.76 करोड़। दोनों संख्याएं लगभग समान ही हैं लेकिन एक को व्यापक प्रचार-प्रसार मिलता है और दूसरी की ओर किसी का ध्यान भी नहीं जाता। पर्याप्त वित्तीय व अन्य साधन तो दूर की बात है। समाचार के अनुसार 'पहली बार देश में डिजिटल जनगणना' की उपलब्धि के उल्लेख पर यह बताना भी तर्कसंगत होगा कि इस उपलब्धि का श्रेय भी 2019 में की गई 20वीं पशुगणना को जाता है। और यह एक बड़ी, अभूतपूर्व और गौरवमयी उपलब्धि है डिजिटल भारत की।
खेद यही है कि इसे अपेक्षा के अनुसार अच्छी पहचान नहीं मिल पाई। मुख्यधारा के समाचार पत्र भी यही समझते हैं कि डिजिटल गणना अब होगी पहली बार। जनगणना भारत के महापंजीयक द्वारा जनगणना निदेशालयों के माध्यम से दस वर्ष की अवधि पश्चात की जाती है। प्रत्येक राज्य में जनगणना के एक वरिष्ठ अधिकारी के अधीन स्थायी निदेशालय हैं। जब वास्तविक जनगणना आरंभ होती है तो लाखों अन्य कर्मचारियों को अस्थायी तौर पर गणना के लिए तैनात किया जाता है। यह प्रगणक अथवा गिनने वाले घर घर जाकर नागरिकों की प्रासंगिक सूचना एकत्रित करते हैं। नाम, लिंग, साक्षरता, कारोबार, विभिन्न सेवाओं की उपलब्धता आदि। कार्य विशाल है और जटिल भी है। लेकिन सच यह भी है कि राष्ट्रीय नीति और योजना निर्धारण के लिए अति महत्वपूर्ण है।
दूसरी ओर पशुगणना के लिए न तो स्थायी प्रशासनिक ढांचा या कार्यालय हैं और न ही वित्तीय संसाधन। हर पांच वर्ष बाद यह व्यापक प्रक्रिया चुपचाप अमल में लायी जाती है। न मीडिया में चर्चा न ही समाज में पहचान। केंद्र औऱ प्रदेशों के पशुपालन विभाग इस विशाल अतिरिक्त बोझ का खामोशी और शांतिपूर्वक निर्वहन करते हैं। एक बहुमूल्य रिपोर्ट भी तैयार होती है जिसके बारे में अधिकतर लोग अनभिज्ञ ही रहते हैं। और यही गलती हम निरंतर करते आ रहे हैं क्योंकि पशुधन न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मौलिक अंग है जिस पर करोड़ों लोगों की आजीविका निर्भर है, अपितु हमारे सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश के आधार का भी अभिन्न हिस्सा है। इसलिए एकदम सही डाटा और सूचना आवश्यक है पशुपालन क्षेत्र की योजनाओं और विकास के लिए।
जाहिर है के जितना जरूरी है मनुष्यों की गिनती करना, उतना ही आवश्यक है गाय, भेड़, बकरी, मुर्गी आदि को गिनना। क्योंकि पशु धन हैं हमारा धन। प्राकृतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक… हर दृष्टि से। पशुगणना के महत्व को समझा गया वर्ष 1919 में प्रथम गणना के साथ; इससे 47 वर्ष पूर्व 1872 में जनगणना का प्रारंभ हुआ था। 2019 में संपन्न 20वीं पशुगणना अब तक की सबसे विस्तृत, जटिल और कठिन प्रक्रिया रही है। लगभग 50,000 गणनाकार और 10,000 पर्यवेक्षकों द्वारा देश के प्रत्येक गांव और वार्ड में पशुओं की गणना की गई। कार्य की विषमता इस बात से उजागर होती है कि तुलना में जनगणना में लगभग 25 लाख लोगों की तैनाती होती है हर घर से सूचना एकत्रित करने के लिए, ऊपर से 3768 करोड़ रुपये का आवंटन। पशुगणना का समस्त कार्य और भी भारी-भरकम है क्योंकि जनगणना यहां केवल एक प्रजाति की नहीं बल्कि दर्जनों प्रजातियों और उनकी विभिन्न नस्लों की होती है। कार्य कितना विशालकाय है, इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछली पशुगणना में गाय, भैंस और भेड़-बकरी के अतिरिक्त मिथुन, याक, सुअर, खच्चर, गधे, ऊंट, हाथी इत्यादि की गिनती भी की गई थी।
बात यहीं समाप्त नहीं होती। जो डाटा और सूचना एकत्रित की जाए वह सार्थक और विचारपूर्ण भी होनी चाहिए जिसका नीति और योजना निर्धारण में सशक्त उपयोग हो सके। अत: इस गणना में केवल पशुधन की संख्या ही नहीं निर्धारित की गई बल्कि उनकी नस्ल, लिंग, उम्र, उपयोग, उत्पादकता आदि पर भी पूरी रोशनी डाली गई। साथ ही बेसहारा पशुओं की गिनती भी इसमें शामिल है। उदाहरण के लिए गोवंश की 82 नस्लों की अलग अलग गणना की गई और इसी प्रकार भैंसों की 26 उप-प्रजातियों की। लिंग और आयु की अतिरिक्त यह सूचना भी संकलित की गई की अमुक पशु दूधारू है या नहीं, प्रजनन के लिए है या हल जोतने के लिए इत्यादि। इसी प्रकार बकरियों की 52 और भेड़ों की 84 नस्लों का विस्तृत रिकॉर्ड बनाया गया। अन्य पशुओं, जैसे घोड़े, खच्चर, सुअर आदि की सूचना भी विभिन्न मानदंडों पर बनायी गयी है। पशुगणना में पशुपालकों का आधारभूत डाटा जैसे व्यवसाय, आमदन, भू-स्वामित्व आदि का संकलन भी किया गया है। और जैसा पहले कहा गया, यह सब किया गया है सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से यानी की बिना किसी कागज का प्रयोग किए कंप्यूटर टेबलेट्स के जरिये, एक मोबाइल एप द्वारा।
सूचना वास्तविक समय में एकत्रित और संकलित हुई और साथ ही योजना के उद्देश्य से इसका विश्लेषण भी। गतिशील पशुपालन क्षेत्र के निर्माण और विकास में अभूतपूर्व योगदान। पशुगणना की प्रक्रिया लीक से अलग है, श्रेष्ठ है और इस बात का प्रमाण है कि जटिल से जटिल कार्यों को संसाधनों के अभाव में भी हम सरलता से करने की क्षमता रखते हैं। यह मान्यता है असंख्य गुमनाम पशु चिकित्सकों और पैरा-वेट्स की प्रतिबद्धत्ता और परिश्रम की। अत: यह अपेक्षा करना उचित होगा कि हमें इस अति महत्वपूर्ण, विशालकाय और असंभव से लगने वाले कार्य के प्रति अपनी उदासीनता को त्यागना चाहिए। इस वर्ष जनगणना होगी, कई दिनों तक गूंजती रहेगी और बार-बार इस बात पर तालियां बजेंगी कि 'पहली बार' डिजिटल जनगणना हो रही है। यह ठीक है और होना भी चाहिए। लेकिन इस जश्न के शोर-गुल में यह न भूलें कि इतना ही कठिन और जटिल कार्य दो वर्ष पूर्व पशुगणना का किया गया है; बिना अतिरिक्त साधनों के। याद यह भी रखना चाहिए कि पहली बार ' डिजिटल' गणना 2019 की पशुगणना थी।
(लेखक भारत सरकार के मात्स्यिकी, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय के पूर्व सचिव हैं…)