कांगड़ा ज़िला की प्राचीनतम छावनी "योल खास" के प्रबंधन से रक्षा मंत्रालय हाथ खींच कर इसे अब हिमाचल सरकार को सौंप रहा है । यहां अब केवल सेना का स्टेशन ही रहेगा और कैंटोनमेंट बोर्ड का अस्तित्व सदा-सदा के लिए खत्म हो जाएगा । ऐसा रक्षा मंत्रालय द्वारा रक्षा बजट में 467 करोड़ के देश के छावनी प्रबंधन में बचत की कवायद को लेकर किया जा रहा है।
देश में छावनियों के प्रबंधन को ले कर रक्षा मंत्रालय में कई वर्षों से मंथन हो रहा है । सेना द्वारा पहले चरण में योल के अतिरिक्त महू, लखनऊ, अल्मोड़ा,अहमद नगर और फिरोजपुर छावनी का प्रबंधन सिविल अथॉरिटीज को देने का प्रस्ताव है ।
पश्चिमी हिमालय की धौलाधार पर्वत श्रृंखलाओं की तलहटी में बसे योल कैंट में ब्रिटीश सरकार ने 1849 में यंग ऑफिसर्स लीव कैम्प स्थापित किया था। प्राचीन भजेठा गांव कालांतर में इस कैंप की वजह से योल कैम्प बन गया। धीरे-धीरे इसने छावनी का रूप ले लिया। ब्रिटिश सेना ने यहां पहले विश्व युद्द में जर्मन युद्द बंदियों को रखा था और दूसरे विश्व युद्द में इटालियन युद्द-बंदी इस शिविर में थे ।
ज़िला कांगड़ा की राजधानी धर्मशाला से धर्मशाला-पालमपुर मार्ग पर 10 किलोमीटर दूर स्थित इस कस्बे के विकास की दृष्टि से रक्षा मंत्रालय का यह निर्णय जनहित में है और प्रदेशवासियों के लिए लाभकारी होगा ।
हिमाचल में बहुत सी अधिसूचित छावनियां हैं जिनमें डगशाई और बकलोह (चम्बा) की सैनिक छावनियां सबसे प्राचीन है। डगशाई की सैनिक छावनी तो 1847 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने स्थापित की थी जिस के लिए पटियाला के महाराजा भूपेन्द्र सिंह ने कम्पनी को पांच गांव मुफ्त दिए थे जिनमें एक गांव डगशाई था जिसके नाम पर इस छावनी का नाम रखा गया था ।
(ऊपरोक्त विचार वरिष्ठ स्तंभकार विवेक अविनाशी के हैं। विवेक अविनाशी काफी लंबे अर्से से हिमाचल की राजनीति पर टिप्पणी लिखते रहे हैं और देश के नामचीन पत्र-पत्रिकाओं में इनके विचार पब्लिश होते रहे हैं।)