हिमाचल के इतिहास में धामी कांड को प्रदेश के काले अध्याय के रूप में जाना जाता है। धामी एक छोटी सी रियासत थी जो राणा शासन के अधीन थी। स्वतंत्रता संग्राम और राजाओं के खिलाफ आवाज उठाने के लिए धामी रियासत में 1939 में घटित हुए धामी गोलीकांड की घटना से यह रियासत पूरे देश में चर्चा में रही। इसके बाद इस गोलीकांड की जांच के लिए एक कमेटी का भी गठन किया गया था।
धामी रियासत
शिमला हिल्स रियासतों में धामी रियासत एक ऐसी रियासत थी कि जो किसी अन्य राज्य या रियासत के अधीन नहीं रही। धामी रियासत के राजा दिल्ली के पृथ्वी राज चौहान के वंशज रहे हैं। 73 वर्ग किलोमीटर में फैली इस रियासत की राजधानी हलोग थी और हलोग और धामी में अभी भी सैकड़ों वर्ष पहले बने महलों को देखा जा सकता है। धामी रियासत के सबसे प्रतापी और प्रसिद्ध राजा दलीप सिंह रहे। वे फारेस्ट्री में मास्टर थे। उन्होंने 1908 से 1987 तक राज किया। इसके बाद राजा प्रताप सिंह गद्दी पर बैठे और उन्होंने 1987 से 2008 राज किया।
धामी के लोगों की प्रमुख मांगे थी
धामी के लोगों की राजा से बेगार प्रथा की समाप्ति, कर में 50 फिसदी की कमी और रियासती प्रजामंडल धामी की फिर से स्थापित करने की मांग की थी। इसके चलते 1937 में एक धार्मिक सुधार सभा प्रेम प्रचारनी सभा का गठन किया गया जिसके मुखिया सीता राम थे। उन्होंने ही इन प्रमुख मांगों को उठाया था।
1500 लोगों के समूह ने किया धामी की तरफ कूच
अपनी बातों को मनमाने के लिए 1500 के करीब लोगों ने 16 जुलाई 1939 को भागमल सौठा की अगुवाई में धामी की तरफ कूच किया। लेकिन धामी पहुंचने से पहले ही बीच में पड़ने वाले मार्ग घणाहट्टी में भागमल को गिरफ्तार कर लिया गया।
राणा ने गोली चलाने के दिए आदेश
अपने मुखिया भागमल के गिरफ्तार होने से लोगों में रोष उत्पन्न हो गया। क्रांतिकारियों ने पुलिस के लाठी डंडों की मार झेलते हुए धामी के राणा की तरफ बढ़े। राणा उग्र भीड़ से घबरा गया। और गोली चलाने के आदेश दे दिए। हिमाचल के इतिहास में होने वाली यह पहली घटना थी। इस घटना में दो लोगों उमादत्त और दुर्गा दास की मौत हो गई। जिसके बाद मामले में गांधी और जवाहर लाल नेहरू को अवगत कराया।
गोलीकांड की गांधी और नेहरू ने भी की थी निंदा
इस घटना के बाद सीता राम, भास्कर नंद और राज कुमारी अमृक कौर की अगुवाई में एक दल गांधी- नेहरू से मिला था। जिसके बाद राष्ट्रीय नेताओं का ध्यान इस पहाड़ी राज्य की ओर गया। इस घटना को लेकर गांधी और नेहरू ने भी निंदा की थी। इसके लिए बाद में कमेटी का गठन भी किया गया था।