*विवेक अविनाशी।।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान जब मोदी कांगड़ा आये थे तब वे प्रधानमंत्री नहीं थे । प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी का यह कांगड़ा का पहला दौरा था । कांगड़ा के लोगों से भावनात्मक सम्बन्घ जोड़ कर स्थानीय बीजेपी प्रतिनिधियों के लिए वोट की गुहार अजीब सा एहसास देती है। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय मुद्दों पर लोगों को कुछ कहते तो शायद और अच्छा लगता । बहरहाल, हिमाचल प्रदेश के काफी हिस्सों में लोग प्रचार से नहीं बल्कि प्रत्याशियों के निजी संबंध और कार्य-कुशलता के आधार पर वोट करते हैं। कई वजहें हैं जो पीएम मोदी को अपने भाषण की धार लगातार बदलने पर मजबूर करती रही हैं।
कांगड़ा के शाहपुर और मंडी के सुंदरनगर में प्रधानमंत्री के भाषण में कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व ख़ास तौर से निशाने पर रहा। दरअसल, चुनावी अब आखिरी दौर में है लिहाजा वीरभद्र के बाद मोदी राष्ट्रीय नेतृत्व पर भी अटैक साध रहे हैं। शायद इसका दूसरा कारण गुजरात कांग्रेस के मनोबल पर भी धावा बोलना हो सकता है। नरेंद्र मोदी ने अपने जाता भाषण में सीएम वीरभद्र सिंह को बेचारगी के दायरे में रख दिया। जब उन्होंने शाहपुर विधानसभा क्षेत्र की एक रैली में कहा कि वीरभद्र को कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व नसीब के भरोसे टांग दिया है, तो जाहिर तौर पर उन्होंने इस वक्तव्य के जरिए हिमाचल के विरोध को ध्वस्त करने की कोशिश की। क्योंकि, यहां चेहरा वीरभद्र ही हैं और उन्हें बेचारा तथा असहाय की श्रेणी में खड़ाकर कमजोर साबित करना एक बड़ी रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
मोदी और अमितशाह की जोड़ी हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के स्टार प्रचारक वीरभद्र सिंह पर भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर ताबड़-तोड़ हमले कर रही है। प्रधानमंत्री भी 4 के बाद 5 नंवबर को भी ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं। शाहपुर और सुंदरनगर के बाद पीएम मोदी अब पालमपुर विधानसभा क्षेत्र में भी लोगों को संबोधित करेंगे। पालमपुर में उनके भाषण का साइकोलॉजिकल अटैक क्या रहता है, यह भी देखने वाली बात होगी। लेकिन, ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि जितनी भीड़ मोदी की रैलियों में आ रही है, क्या वह वोट में कनवर्ट हो पाएगी? क्या मोदी के दावों से जनता प्रभावित होगी? ये सवाल तब और प्रासंगिक हो जाते हैं, जब हर तीसरी-चौथी सीट पर बीजेपी के बागी नेता मुश्किलें खड़ी किए हुए हैं। प्रधानमंत्री भी इन बगावतों से वाकिफ हैं, तभी तो उन्होंने इसका ठिकरा भी कांग्रेस पर फोड़ा और कहा कि कांग्रेस बागियों के सहारे जीत का सपना पाल रही है।
कुल मिलाकर अगर में तथ्यात्मक दृष्टि से पीएम मोदी की रैलियों की तस्दीक करते हैं, तो पता चलता है कि हिमाचल में मोदी की वो लहर नहीं है, जो अन्य राज्यों में देखने को अब तक मिली है। वीरभद्र पर भ्रष्टाचार के आरोपों का हिमाचल के मतदाताओं पर ज्यादा असर भी दिखाई नहीं देता। क्योंकि वे जानते हैं वर्ष 1998 में पंडित सुखराम के भ्रष्टाचार आरोपों के बावजूद उन्होंने 5 सीटें जीती थीं और हिमाचल की राजनीति का नक्शा ही बदल दिया था। उस दौरान भी भ्रष्टाचार के आरोप झेल रहे सुखराम के साथ मिलकर बीजेपी ने सरकार भी बनाई थी। आज की तारीख में भी पंडित सुखराम के बेटे अनिल शर्मा को बीजेपी ने अपना लिया है और कमाल की बात कि बीजेपी के नेता अनिल को पंडित सुखराम से नहीं जोड़ने की नसीहत भी दे रहे हैं।
लेकिन, जनता इन सभी तर्कों पर गौर कर रही है। हिमाचल की जनता ने पंडित सुखराम को भ्रष्टाचार के आरोप के बावजूद जीताया था। लाजमी है कि आज की तारीख में भी स्थानीय मुद्दे और नेता का जनता के प्रति निजी व्यवहार ज्यादा मायने रखता है। इस बात को कांग्रेस पूरी तरह समझती है और बीजेपी ने भी इस स्थिति को भांप रखा है।
बहरहाल, पीएम मोदी की पालमपुर की रैली पर सबकी निगाहे हैं। निर्दलीय एवं बागी उम्मीदवार प्रवीण शर्मा सहानुभूति बटोरकर चुनाव जीतने की जीतोड़ कोशिश कर रहे हैं। जबकि, दूसरी तरफ बीजेपी की इस टूट का लाभ कांग्रेस प्रत्याशी आशीष बुटेल बुनाने की जुगत में लगे हैं। ऐसे माहौल में मोदी का प्रवास ज़मीनी हकीकत में कितना बदलाव ला पायेगा यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा लेकिन आज यह तय है कांगड़ा की अधिकांश सीटों पर निर्णय प्रत्याशियों की मेहनत और जनता के वोट से होगा प्रधानमंत्री के प्रचार से नहीं…।
(विवेक अविनाशी एक जाने-माने स्तंभकार हैं। काफी लंबे समय से हिमाचल प्रदेश की राजनीति पर इनकी टिप्पणियां पत्र-पत्रिकाओं में छपती रही हैं।)