देश प्रदेश में कोरोना के दूसरी लहर का संक्रमण काफ़ी तेजी से फैल रहा है। हालांकि इसका एक कारण देश-प्रदेश की जनता द्वारा बरती जा रही ढिलाई भी है लेकिन सरकारें भी अब कोरोना को लेकर सज़ग नहीं रही। केंद्र की मोदी सरकार बंगाल के चुनावों में व्यस्त है तो हिमाचल प्रदेश की जयराम सरकार एक तरह से केंद्र के अगले आदेश मिलने की आस पर बैठी है। देश के कई राज्यों में जहां बेड तक नहीं उपलब्ध हैं वहीं अब हिमाचल में भी कोरोना मरीज़ों के लिए कोविड अस्पताल एक तरह से नाममात्र ही हैं। प्रदेश सरकार और स्वास्थ्य विभाग ज्यादातर मरीज़ों को होम आइसोलेशन ही दे रहा है जिसके चलते घरों में ज्यादातर मौतें होने से डेथ रेट बढ़ा है। एक मीडिया रिपोर्ट के हिसाब से भी ज्यादातर मौतें घर पर बैठे मरीज़ों की ही हो रही हैं।
लिहाज़ा, स्वास्थ्य मंत्री और विभाग तो कर्मियों को घर में आइसोलेट मरीज़ों का पूरा ध्यान रखने की बात कह रहे हैं लेकिन 50 साल से ज्यादा के मरीज़ों को घर में रहने पर ज्यादा परेशानी हो रही है। इसका एक कारण ज्यादा सोचना या हाइपर टेंशन भी हो सकता है। ऐसे में प्रदेश सरकार भी अपने स्तर पर कोई फैसले लेने में कतरा रही है। लॉकडाउन और कर्फ्यू जैसी स्थिति तो शायद माली हालत के लिए वाजिब नहीं, लेकिन कम से कम कोविड सेंटर बढ़ाने तक का फैसला तो प्रदेश सरकार अपने स्तर पर ले ही सकती है। जो 50 साल से ज्यादा के मरीज हैं उन्हें तो अस्पताल ले जाया जाए ताकि वे बिना किसी वहम के डॉक्टरों की नजर में ठीक होने की आस़ जुटा सकें।
रही लॉकडाउन और कर्फ्यू की बात तो इस वक़्त ऐसा करना माली हालत पर पत्थर रखने जैसा होगा। बेशक प्रदेश सरकार भी कई दफा लॉकडाउन और कर्फ्यू से इंकार कर चुकी है, लेकिन जब आदेश मोदी सरकार पास करेगी तो जयराम सरकार बिना सोचे समझे ऐसा करने में देर नहीं लगाएगी। फिलवक़्त के लिए केंद्र सरकार चुनावों में व्यस्त है और कोई ख़ास आदेश न मिलने से आए दिन प्रदेश के मुख्यमंत्री को मीडिया सहित जनता के सवालों को जवाब देने पड़ रहे हैं।
हाल ही ऊना में रविवार को दिया गया मुख्यमंत्री का बयान कई तरह के संकेत देता है। ऊना में पत्रकार वार्ता में मुख्यमंत्री ने कहा कि अभी तक कोरोना पीक पर नहीं पहुंचा है। अभी के लिए लॉकडाउन की जरूरत नहीं है अगर जरूरी हुआ तो फैसला लिया जाएगा। यानी साफ़ शब्दों में कहे तो प्रदेश के मुखिया किसी भी सख्ती को बढ़ाने में कोरोना का पीक पर पहुंचने का इंतजार कर रहे हैं। पंजाब, दिल्ली सहित कई राज्यों में नाइट कर्फ्यू जैसी कई सख़्तियां की गई हैं लेकिन प्रदेश के मुखिया अभी किसी भी तरह का निर्णय लेने के बजाए हर रोज बस बैठकें कर जायजा ले रहे हैं। या यूं भी कहा जा सकता है कि शायद मुख्यमंत्री केंद्र सरकार के आदेशों का इंतजार कर रहे हों कि आगे क्या करना है…??
वहीं, लगातार बढ़ रहे संक्रमण को देखते हुए ये भी कहा जा सकता है कि कोरोना संक्रमण अब प्रशासन और सरकार के नियंत्रण से बाहर हो गया है। ऐसे में लॉकडाउन बेशक सही नहीं, लेकिन लॉकडाउन ही एकमात्र सहारा बच जाता है जिससे कोरोना के संक्रमण को बढ़ने से रोका जा सकता हो।
पेपर के वक्त शिक्षण संस्थान बंद
कोरोना के मामले बढ़ने से सरकार ने शिक्षण संस्थान बंद करने का फैसला लिया है। हालांकि की सुरक्षा की लिहाज से फैसला सही मालूम पड़ता है लेकिन जनता इसपर विरोध भी जता रही है। ज्यादा विरोध निजी स्कूलों की बढ़ती मनमानी या फीस, बच्चों की छूटती पढ़ाई को लेकर है। लेकिन इस वक्त जनता को भी सरकार के साथ सहयोग करना चाहिए ताकि संक्रमण बढ़ने से रोका जा सके। अगर ग़लती से कहीं बच्चों में संक्रमण फैसला है तो यही जनता फ़िर सरकार को कोसेगी। ऐसे में अच्छा है कि गतिरोध ख़त्म कर सरकार का सहयोग करें। ये जरूर है कि सरकार को निजी स्कूलों के खिलाफ बनाई गाइडलाइन्स को सख्ती से देखना चाहिए।
कोविड सेंटर तक तो बनाए सरकार
प्रदेश सरकार को चाहिए कि कम से कम कोविड सेंटर तो बनाए जाएं। प्रदेश में 8300 के करीब मामले एक्टिव चल रहे हैं और इनमें 70 से 80 फीसदी मरीज घर में इलाज ले रहे हैं। स्वास्थ्य कर्मियों को फोन करो तो वे आशा वर्करों के आने की बात कहते हैं। अगर कोई मरीज़ घऱ में सही महसूस नहीं कर रहा है और वे अस्पताल जाना चाहता हो तो वे नहीं जा सकता। स्वास्थ्य हेल्पर कहती हैं कि उनके बच्चे खुद देखभाल करें जबकि सरकार के आदेश हैं 2 गज दूरी। ऐसे में ऑक्सीज़न की मात्रा को देखकर ही मरीज़ों को अस्पताल में भेजा जा रहा है। लेकिन सरकार और कर्मी शायद ये नहीं समझ पा रहे कि सोच विचार और वहम घर में मरीज़ो को परेशान कर रहा है। अस्पताल में डॉक्टरों की नजर में मरीज़ों को एक तरह से आस रहती है कि हम डॉक्टर की देख रेख में हैं।