चुनाव के बाद सबकी नज़रे 18 दिसंबर पर गड़ी हुई है। सबको इस तारीख का बेसब्री से इंतज़ार है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दलों के नेता अपनी अपनी सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं। लेकिन सरकार चाहे किसी भी दल की बने एक बार फिर हिमाचल की बागड़ोर बूढ़े हाथों में जाती दिख रही है। क्योंकि कांग्रेस ने मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के चेहरे पर फिर से दांव खेला है। जिनकी आयु 80 के पार हो चुकी है।
यानी कि वीरभद्र सिंह अपने जीवन के 83 बसंत देख चुके है। पिछले पांच वर्ष भी इनके कंधों पर हिमाचल आगे बढ़ा लेकिन इन्हें भी चलने के लिए दूसरों के कंधों का सहारा लेना पड़ता है। दूसरी तरफ बीजेपी है जिसने सीएम के चेहरे पर अंत में जाकर अपने पत्ते खोले और अंततः विपक्ष के नेता और 2 बार हिमाचल के मुख्यमंत्री रह चुके प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में घोषित कर दिया। प्रेम कुमार धूमल भी अपनी जीवन के सात दशक पूरे कर चुके है और 74वें साल में प्रवेश कर गए है। हां ये जरूर है कि प्रेम कुमार धूमल वर्तमान मुख्यमंत्री से 10 साल छोटे हैं।
हिमाचल प्रदेश लगातार आर्थिक तंगी से जूझ रहा है। हिमाचल के वितीय घाटा 50 हज़ार करोड़ के करीब पहुंच चुका है। सरकार फिर लोन लेने जा रही है। दस लाख बेरोजगार युवाओं की फ़ौज यहां बढ़ चुकी है, जंगली जानवर किसानों की खेती छुड़ा चुके हैं, कर्मचारी 4-9-14 की मांग करते करते थक चुके हैं, पेंशनर अपनी पेंशन को लेकर परेशान है।
शिक्षक वित्तीय लाभों की मांग करते रहे हैं, आउटसोर्स, पीटीए, कंप्यूटर टीचर, वाटर कैरियर, पंचायत चौकीदार, आंगनवाड़ी और आशा वर्कर अपने लिए नीति बनाने की मांग को लेकर संघर्ष करते रहे हैं। छात्र रूसा प्रणाली और फीस वृद्धि को लेकर आंदोलन पर उतारू रहे ऐसे में वितीय घाटे की मार झेल रहे हिमाचल का क्या होगा? हिमाचल का ये ताज सोने के बजाए कांटो का है जिसके भी सिर सजे चुनौतियां कम नहीं है।