*सतीश धर।। हाल ही में किन्नौर ज़िला के रिब्बा गाँव में एक 74 वर्षीय बुजुर्ग महिला पर नरभक्षी तेंदुए ने हमला कर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया । इस घटना से एक बार फिर तेंदुओं के आतंक से ग्रसित हिमाचल राज्य चर्चा में आ गया है । हिमाचल प्रदेश में प्रत्येक वर्ष तेंदुओं द्वारा मानव-बस्तियों में घुस कर लोगों के जान-माल को नुकसान पहुंचाने की घटनाएं चर्चा में रहती हैं । शायद ही प्रदेश का कोई ज़िला ऐसा होगा जहां तेंदुओं का आतंक ना हो । कुल्लू और मंडी ज़िले के भीतरी क्षेत्रों में और चम्बा ज़िले के वनाच्छादित शहरों के निकट बस्तियों में तो इन तेंदुओं का ख़ौफ़ हर वक्त बना रहता है ।
हिमाचल प्रदेश में वन्य-जीवों का मानव बस्तियों में प्रवेश सातवें दशक के बाद वनों के अंधाधुंध कटान के कारण ज्यादा होना प्रारम्भ हुआ है । तेंदुए जैसे वन्य-जीव का नरभक्षी होना एक असामान्य स्थिति है । लोगों में आम धारणा है यदि तेंदुए को एक बार अगर आदमी के खून का स्वाद लग जाये तो वह खतरनाक हो जाता है। तेंदुआ बस्तियों की ओर क्यों चला आता है, इस पर भी पर्यावरणविदों ने अपना मत व्यक्त किया है । उनका मानना है अत्यधिक शहरीकरण के कारण भी हिमाचल प्रदेश में नरभक्षी तेंदुए मानव-बस्तियों तक अपने शिकार की तलाश में आ पहुँचते हैं ।
वैसे तेंदुओं के शिकार में कुत्ते सबसे अधिक पसंद हैं। इस कारण वे अपने शिकार की तलाश में गाँव तक पहुँच जाते हैं। तेंदुआ तेज दौड़ने वाले वन्य-प्राणियों में से है और एक अनुमान के अनुसार वह 60 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकता है और 20 फीट तक छलांग लगा सकता है । अपने शिकार को तेंदुआ गले और गर्दन पर झपट कर हमला करता है । अपने शिकार की तलाश में तेंदुआ जंगल से 500 किलोमीटर दूर तक जा सकता है। हिमाचल प्रदेश के स्पीती घाटी में हिम-तेंदुए पाए जाते हैं।
वर्ष 2004 में की गयी एक गणना के अनुसार हिमाचल प्रदेश में 761 तेंदुए थे । वैसे हिमाचल प्रदेश में तेंदुओं के मानव बस्ती में पहुंच कर हमला करने की घटनाएं सबसे अधिक वर्ष 2007-2008 में हुईं। इस दौरान 7 व्यक्ति तेंदुओं के हमले से अपने प्राण गवां बैठे। नेपाल में तेंदुओं के नरभक्षी होने की सबसे अधिक घटनाएं होती हैं।
प्रदेश के वन विभाग के लिए तेंदुओं को जीवित पकड़ना सदैव चुनौति रहा है । इसका कारण वन-विभाग के पास इस सम्बन्ध में बुनियादी सुविधाओं की कमी है । वन विभाग के कर्मचारियों को पूर्ण रूप से जंगली जानवरों से सुरक्षा के लिए हथियार भी राज्य में उपलब्ध नहीं कराए गए हैं।
अब सवाल उठता है कि इस भयावह स्थिति से निपटा कैसे जा सके। दरअसल, आदिकाल से मानव-सभ्यताएं और जंगली जानवर एक सामानंतर जिदंगी जीते आ रहे हैं। लेकिन, वर्तमान में संकट जंगलों के कटान है। ऐसे में जरूरी है कि जानवर अपने क्षेत्र तक सीमित रहें इसका विशेष ख़्याल रखा जाए। कई विकसित देशों ने मानव-निर्मित घने जंगलों के जरिए जंगली जानवरों की सीमाओं को रेखांकन कर दिया है। साथ ही साथ जंगल से सटे बस्ती वाले इलाकों में इल्केट्रिकल वायरिंग का इस्तेमाल भी किया गया है। हिमाचल प्रदेश में भी काफी हद तक इस प्रणाली को लागू किया जा सकता है।
इसके अलावा सभी जरूरी है कि प्रदेश सरकार वन-विभाग की टीमों के वाजिब तौर पर मुस्तैद करे। इसके लिए वन-कर्मियों को जरूरी हथियार और संसाधनों से लैस करना होगा। हिमाचल प्रदेश के वन-कर्मी बुनियादी सहूलियतों से ही महरूम है। ऐसे में जरूरी है कि जंगली जानवरों से निपटने के लिए वर्तमान में जितनी संभव तकनीकें हैं वे सारी वन-कर्मियों के लिए मुहैया कराई जाएं।
(हिमाचल प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले सतीश धर जाने-माने साहित्यकार एवं कवि हैं। अक्सर हिमाचल की संस्कृति और पर्यावरण पर इनके लेख पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहते हैं।