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मोदी सरकार की ‘फेयर एंड लवली’ स्कीम से नज़र हटाइए, ‘न्यू इंडिया’ के खंडहर दिखने लगेंगे

शिमला में हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विशाल जनसभा किसी ‘फेयर एंड लवली’ स्कीम की तरह लगी. ऐसा लगा प्रचार का तेल लगाकर सरकार महंगाई और बेरोजगारी से बौखलाए लोगों को ‘ठंडा-ठंडा कूल कूल’ कर देगी…

अमृत तिवारी |

अमृत तिवारी, संपादक।

शिमला में हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विशाल जनसभा किसी ‘फेयर एंड लवली’ स्कीम की तरह लगी. ऐसा लगा प्रचार का तेल लगाकर सरकार महंगाई और बेरोजगारी से बौखलाए लोगों को ‘ठंडा-ठंडा कूल कूल’ कर देगी. ऐतिहासिक रिज मैदान से पीएम मोदी ने अपनी सरकार की कामयाबियों का जिक्र किया और योजनाओं के जमीनी स्तर पर लागू करने की बात भी की. गवाहियों के लिए दूर-दराज से नागरिकों को भी प्रधानमंत्री से जोड़ा गया और बातचीत का लाइव टेलिकास्ट भारतवर्ष की जनता के लिए किया गया. PM मोदी के भाषण और इस भव्य कार्यक्रम को देख एक दफे सभी को लगा कि देश में तो सब कुछ ठीक है. भारत की दशा और दिशा काफी पुख्ता और मजबूत है. गरीब-कामगार की स्थिति तो काफी बढ़िया है. हर तरफ राम राज्य है. लेकिन, राजनीति के इस विज्ञापन और मेगा शोज के दौर में आपको आंखें खुली और जहन को बैलेंस रखना होगा. क्योंकि, मैं आपका ध्यान ऐसी ओर ले जाऊंगा जहां से सरकारी प्रचार तंत्र का पूरा तिलिस्म आपको साफ-साफ नज़र आने लगेगा.

“कहां तो तय था चरागां हर घर के लिए
कहां चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए…”

2014 से पहले मोदी सरकार ने देश की जनता से कई वादे किए. जिसमें बेरोजगारी दूर करना, राष्ट्र को शक्तिशाली बनाना, आर्थव्यवस्था को मजबूत करना और स्वास्थ्य के साथ-साथ शिक्षा के ढांचे को मजबूत करना था. लेकिन, आंकड़ों पर गौर करें तो बीते 8 सालों में जॉब क्रिएशन तो दूर, उल्टा 12 करोड़ के करीब जॉब खत्म हुए हैं. योग्य और शिक्षित बेरोजगारों की फौज देश में खड़ी हो रही है. हिमाचल प्रदेश में स्थिति तो और भी भयानक है. वहीं, डिफेंस में भर्ती होने वाले युवाओं के सपने पर भी कुठाराघात हो रहा है. 13 दिसंबर, 2021 को रक्षा मंत्रालय की ओर से संसद में बताया गया कि वर्तमान मं 1, 22, 555 सुरक्षाकर्मियों के पद खाली हैं. इनमें 10,000 तो सिर्फ सोल्जर रैंक के पद हैं. लेकिन, आपको पता होगा कि पिछले 6 सालों से डिफेंस के क्षेत्र में भर्तियां तक नहीं निकली हैं. अधिकांश युवा ओवरएज होने के चलते बेरोजगारी का दंश झेलने के लिए मजबूर हैं. वैसे देखा जाए तो भारत को 2028 तक 34.35 करोड़ जॉब क्रिएशन की सख्त जरूरत है. लेकिन, अगर सरकार इसी रफ्तार से रोजगार तैयार करती रही, तो यह टारगेट

“घर लौट के रोएंगे मां-बाप अकेले में
मिट्टी के खिलौने भी सस्ते न थे मेले में”

देश में महंगाई थोक हो या रिटेल… हर जगह जलवा-फरोश है. हालांकि, वैश्विक वातावरण भी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए काफी प्रतिकूल हैं. ऐसे में वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं और सरकार कंट्रोल करने की जद्दोजहद में लगातार लगी हुई है. अप्रैल महीने में होल सेल महंगाई दर 15.8% की दर से 30 साल के सबसे उच्चतम स्तर पर रही. वहीं, खुदरा महंगाई दर पिछले 8 साल के उच्चतम स्तर पर लगभग 7.8 फीसदी के करीब रही. तमाम राहतों के बावजूद 1000 रुपये का गैस सिलेंडर आम लोगों का जायका खराब किए हुए है. इसके अलावा AC, फ्रीज, TV जैसे इलेक्ट्रॉनिक आइटम की कीमतों में भी 20 से 30 प्रतिशत का इजाफा है. पेट्रोल और डीजल की बात करें तो इसकी कीमतें तो सबसे ज्यादा लोगों की जेब पर डकैती डाले हुए हैं. मोदी सरकार के दौरान पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले एक्साईज ड्यूटी में 8 सालों के दौरान क्रमश: 344% और 110% की बढ़ोतरी हुई है.

“क्या से क्या हो गए देखते-देखते…”
देश में आर्थिक स्थिति ही सबसे ज्यादा नाजुक है. सरकार ने कई फैसले लिए लेकिन फिर भी इस पर काबू पाने में कामयाबी नहीं मिल पाई है. रिजर्व बैंक की ओर से भी अप्रत्याशित फैसले अभी तक लिए जा चुके हैं. लेकिन, लॉन्ग-टर्म के नजरिए से भी स्थिति संतोषजनक नहीं है. बैंकों की हालत काफी बुरी है. विपक्षी दलों की मानें तो मोदी सरकार के दौरान 5,35,000 करोड़ रुपये के बैंकिंग फ्रॉड हुए. बैंकों का ग्रॉस NPA 21 लाख करोड़ रुपये है. वहीं, वैश्विक रैंकिंग में भारत का हर पैमाने पर पिछड़ना भी चिंता का विषय है. मसलन, भुखमरी की वैश्विक रैंकिंग की बात करें तो 2014 में भारत 55वें स्थान पर थो जो 2021 में गिरकर 101 स्थान पर आ गया है. ऐसे ही कानून व्यवस्था के मामले में 2014 के दौरान भारत की रैंकिंग 35 थी. लेकिन, 2021 में अब यह 79 है. लोकतंत्र इंडेक्स में भारत 2014 में 27वें पायदान पर था. लेकिन, 2021 में 46वें पायदान पर आ गया है. सामाजिक प्रगति की बात करें तो भी भारत 102 से गिरकर 115 पायदान पर है.

“रौशनी होगी ये उम्मीद जगाए रखिए
एक चिंगारी तो दिल में भी बनाए रखिए”

मोदी सरकार के कार्यकाल में ऐसा नहीं है कि हालात चौतरफा बद्तर हुए हैं. कोविड महामारी और वैश्विक स्तर पर बदलते राष्ट्रों के कूटनीतिक इक्वेशन ने भी काफी चुनौतियां खड़ी की हैं. हालांकि, इस दौर में मनरेगा के फंड में बढ़ोतरी कर सरकार ने बेहतर काम किया. इसके अलावा अपने 8 साल के दौरान 11 करोड़ शौचालयों का निर्माण एक बहुत बड़ी कड़ी है. स्वच्छता अभियान में सरकार ने बहुत ज्यादा फंड खर्च किए. इसके अलावा 45 करोड़ बैंक खाते खोले गए. 3 करोड़ से ज्यादा लोगों का मुफ्त इलाज सरकार ने आयुष्मान योजना के तहत कराया. वहीं, रोजगार के लिए 35 करोड़ का कर्ज भी आम जनमानस तक पहुंचाया गया. गरीबों के आवास की बात करें तो मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में 2.38 करोड़ आवास दिए हैं. वहीं, उज्ज्वला योजना के तहत 9 करोड़ घरों को एलपीजी मुहैया कराया है.

“मत कहो आकाश में कोहरा घना है
ये किसी की व्यक्तिगत आलोचना है”

आप पाठक यह भी कह सकते हैं कि यहां पर सिर्फ और सिर्फ मोदी सरकार के आलोचनाओं का पुलिंदा रखा गया है. जबकि, सर्जिकल स्ट्राइक, अनुच्छेद 370, वैश्विक स्तर पर भारत की साख, विदेश नीति में पाकिस्तान को पछाड़ना, गालवान घाटी के मुद्दे पर चीन की आंख में आंख डालकर बातें करना, दुनिया के देशों से आंख में आंख डालकर बातें करना मोदी सरकार की उपलब्धि है. लेकिन, इन मुद्दों पर अगर अध्ययन करें तो भारत जब आज से पहले 1 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था भी नहीं था तब अरुणाचल और सिक्कम में चीन को सबक सिखा चुका था. पाकिस्तान के दो हिस्से कर चुका था. स्पेस सेंटर से रॉकेट भी छोड़ रहा था और आईआईटी के साथ-साथ आईआईएम भी बना रहा था. यह समझना होगा कि भारत को इस स्थिति में आने में पीढ़ियां खपीं हैं. आलोचनाओं पर पहरेदारी को देखते हुए सिर्फ एक कविता नज्र है, ” पहली पीढ़ी के लोग मारे जाएंगे, दूसरी पीढ़ी के लोग जेल जाएंगे, तीसरी पीढ़ी के लोग राज करेंगे”. बतौर राष्ट्र भारत भी इसी फेज़ से गुजरा है.

(उपरोक्त लेख लेखक के निजी विचार हैं…)