जिला शिमला राजनीतिक तौर पर कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है। 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 8 में से 6 सीटें जीती थी। चौपाल के निर्दलीय विधायक ने भी कांग्रेस सरकार का ही साथ पांच साल तक दिया। भले ही अब पाला बदलकर बलवीर वर्मा बीजेपी में शामिल होकर बीजेपी चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ रहे है। शिमला शहर की एकमात्र सीट बीजेपी की झोली में आई थी। यदि कोई बड़ा उलटफेर नही हुआ तो समीकरण इस बार 50-50 नज़र आ रहे है।
शिमला शहर में भले ही कांग्रेस के प्रत्याशी कमज़ोर नज़र आ रहे है लेकिन मुक़ाबला कांग्रेस के बागी हरीश जनारथा, बीजेपी के सुरेश भारद्वाज और CPIM के संजय चौहान के बीच माना जा रहा है। उधर शिमला ग्रामीण से विक्रमदित्य के मुकाबले डॉ प्रमोद शर्मा को टिकट देकर मुक़ाबला दिलचस्प बना दिया है। कसुम्पटी सीट पर भले ही कांग्रेस का पलड़ा भारी नज़र आ रहा है लेकिन बीजेपी की ज्योति सेन और CPIM के कुलदीप तंवर को कम आंक कर नहीं देखा जा रहा है।
उधर ठियोग में विद्या स्टोक्स के चुनावी मैदान से बाहर हो जाने के बाद कयास लगाए जा रहे है कि यहां बीजेपी के राकेश वर्मा एवम सीपीआईएम के उम्मीदवार राकेश सिंघा के बीच कड़ी टक्कर है। जुब्बल कोटखाई का इतिहास रहा है कि यहां हर पांच साल बाद विधायक बदल जाता है लेकिन इस मर्तबा कांग्रेस के रोहित ठाकुर बीजेपी के नरेन्द्र बरागटा को कड़ी चुनौती दे रहे हैं। क्योंकि जिस तरह से सड़क यहां का मुख्य मुद्दा रहा वह काफी हद तक हल हो चुका है।
चौपाल विधानसभा क्षेत्र में भी बदलाब की राजनीति हावी रहती है। बीजेपी ने निर्दलीय जीते बलवीर वर्मा को यहां से टिकट दिया उनके मुकाबले कांग्रेस सुभाष मंगलेट चुनाव लड़े है। यहां भी लड़ाई दोनों ही के लिए आसान नही है। वही रामपुर विधानसभा सीट पर पुराने कांग्रेसी सिंघी राम के चुनावी मैदान में उतरने से कांग्रेस के नन्द लाल के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है। जिसका लाभ बीजेपी के प्रेम ड्रैक को मिल सकता है।
हालांकि रामपुर सीट मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के रियासत की सीट है और हमेशा से कांग्रेस का गढ़ रही है। रही बात रोहड़ू सीट का तो यहां भी कांग्रेस का बर्चस्व रहा है। इस बार रोहड़ू के कांग्रेसी विधायक मोहन बरागटा को बीजेपी की महिला प्रत्याशी शाशि वाला से चुनोती मिल रही है। अब देखना यही होगा कि 18 दिसंबर को किस पर कौन भारी पड़ता है।