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हिमाचल कांग्रेस में संगठनात्मक बदलाब भी नहीं आया काम, नए अध्यक्ष के बनते ही कांग्रेस का पहले से ज़्यादा काम तमाम

पी. चंद, शिमला |

वैसे तो देश भर में आए चुनावी नतीज़ों में कांग्रेस की हालत पतली है। लेकिन हिमाचल में तो हालात बेहद खराब है। पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सुखविंद्र सिंह सुक्खू के कार्यकाल में भी कांग्रेस एक भी चुनाव नहीं जीत पाई। सुख्खू को हटाने के लिए एक धड़े ने एड़ी चोटी का जोर लगाया व कामयाब हो गए। कांग्रेस कार्यकर्ताओं को लगा कि अध्यक्ष बदलने से पार्टी की स्थिति सुधर जाएगी। लेकिन, स्थिति सुधरने के बजाए ओर बिगड़ गई।

कुलदीप राठौर के अध्यक्ष बनते ही कांग्रेस के एकजुट होने की बात होने लगी थी। लेकिन जिस तरह से हिमाचल प्रदेश में चुनावी परिणाम आए एक भी विधानसभा सीट में कांग्रेस पार्टी को बढ़त नहीं मिली यहां तक कि अपने आप को कांग्रेस का बड़ा  नेता कहने वाले भी अपने विधानसभा में हजारों की लीड कम नहीं कर सके। बीजेपी की रिकॉर्ड जीत कांग्रेस के आला नेताओं की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रही है।

पहले बात करते हैं पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की जिन्हें प्रचार समिति की कमान सौंपी गई थी लेकिन, वीरभद्र सिंह अपने विधानसभा क्षेत्र अर्की को भी नहीं बचा पाए यहां बीजेपी की रिकॉर्ड लीड दर्ज की गई। दूसरी तरफ विपक्ष के नेता मुकेश अग्निहोत्री भी अपनी इज़्ज़त नहीं बचा पाए। उनके क्षेत्र से भी बीजेपी की हज़ारों की बढ़त मिली। पिछले लोकसभा में उनके क्षेत्र से कांग्रेस को बढ़त मिली थी।

फिर कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप राठौर की बात करें तो पहले तो इन महाशय ने अपने आप को विद्या स्टोक्स के उत्तराधिकारी घोषित करवा लिया और फिर अपने क्षेत्र ठियोग में प्रियंका गांधी की रैली तक रखवा दी। हालांकि, रैली रद्द होने के बाद राज बब्बर ,आनंद शर्मा , रजनी पाटिल और वीरभद्र सिंह ने ठियोग में रैली की। बड़े बड़े दावे किए गए भाजपा पर जमकर निशाने साधे गए। लेकिन कांग्रेस को मिला क्या हार का बड़ा मार्जन…।

हद तो तब हो गई जब कांग्रेस कार्यालय का जिम्मा संभालने वाले रजनीश किमटा ने अध्यक्ष सहित बड़े नेताओं को उड़नखटोले में चौपाल पहुंचा दिया। जानकर बताते है कि चौपाल मे उड़नखटोला एक बार नहीं बल्कि 7 बार गया। अफ़सोस चौपाल से कांग्रेस की टिकट का लालच इन्हें भी आसमान से जमीन पर ले गया।

उधर, 500 वोटों से जीती कांग्रेस की वरिष्ठ नेता आशा कुमारी सहित कांग्रेस का एक भी विधायक अपने क्षेत्र की लीड एक दो क्षेत्रों को छोड़ दस हज़ारों से कम नहीं ला पाया। सुखविंदर सिंह सुक्खू भी अपने घर नादौन को अनुराग के कहर से नहीं बचा पाए। यहां तक कि कांग्रेस के चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी भी अपने चुनावी क्षेत्र से लीड नहीं ले पाए।

तो क्या माना जाए कि कांग्रेस के नेता जमीनी हकीकत से ज़्यादा हवा में उड़ने का शौक पाले बैठे हैं। आंनद शर्मा जैसे कांग्रेस के दिग्गज नेता भी कुछ क्यों नहीं कर पा रहे हैं। जनता से ऐसे नेता जुड़ क्यों नहीं पाते हैं?.. कांग्रेस को मतदान केंद्रों में एजेंट क्यों नहीं मिल पाते हैं?..इस सब पर कांग्रेस को मंथन और चिंतन करने का समय आ गया है।