राहुल सिंह।।
कहते हैं 'संघर्ष' से ही व्यक्तित्व का निर्माण होता है और यह बात राहुल गांधी पर बाखूबी लागू होती है। पिछले कुछ वक़्त से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी राजनीतिक गतिविधियों से मोदी सरकार की खासी फजीहत कर रखी है। कठुआ और उन्नाव रेप के खिलाफ आधी रात को इंडिया गेट पर राहुल गांधी के कैंडल मार्च ने केंद्र सरकार समेत समूचे बीजेपी की नींद उड़ाकर रख दी है। राहुल गांधी ने देश को झंकझोर कर रख देने वाले इन आपराधिक मामलों पर सख्त कार्रवाई की मांग की। साथ ही उन्होंने मामले में सरकार के असंवेदनशील रवैये पर भी जमकर चोट किया।
इससे पहले राहुल गांधी ने ट्वीट कर लोगों को कैंडल मार्च की बात बताई। जिसके बाद भारी संख्या में ख़ासकर युवा इंडिया गेट पर पहुंच गए। हालांकि, आधी रात को इंडिया गेट पर भारी भीड़ के बीच कैंडल मार्च सुरक्षा के लिहाज से ख़तरा था। मगर राजनीतिक रूप से सरकार को चुनौती देने का यह एक अचूक हथियार साबित हुआ।
जानकार इसे राहुल गांधी ही नहीं बल्कि समूचे कांग्रेस के बदलते हुए स्वरूप की तरफ इशारा कर रहे हैं। पिछले कुछ सालों में राहुल गांधी की राजनीतिक गतिविधि पर नज़र डालें तो उनकी राजनीतिक लीक से हटकर दिखाई दे रही है। इस राजनीति में यूथ कनेक्शन और सामने खड़े विरोधी पर स्कोर करने की काबलियत दिखाई देती है। कई ऐसे मौके आए जहां राहुल गांधी किसान, दलित, छात्र और महिलाओं को खुद से जोड़ने में कामयाबी हासिल की।
यूपी के उन्नाव में बलात्कार के आरोपी विधायक पर प्रदेश सरकार की देरी और कठुआ में 8 साल की मासूम बच्ची के साथ रेप-मर्डर के मामले पर देश पहले से ही बौखलाया हुआ है। इसके ऊपर मन की बात करने वाले प्रधानमंत्री की इन मामलों में चुप्पी ने हर तबके में गुस्सा भर दिया है।
जाहिर है इस गुस्से का एक नेतृत्व चाहिए था और राहुल गांधी ने उससे खुद को जोड़ लिया। आधी रात को कैंडल मार्च निकालने का मतलब साफ था कि सुबह उठते ही देश की जनता टीवी और अखबारों की हेडलाइंस में उनकी गतिविधि को देखेगी और उनकी बातों को दिलचस्पी के साथ सुनेगी भी।
राहुल गांधी ने इस मौके पर बिल्कुल सधे अंदाज में सरकार की असंवेदनशीलता को पेश किया और योगी सरकार के साथ-साथ मोदी सरकार को जनता की अदालत में खड़ा कर दिया। कुल मिलाकर इस दौरान राहुल गांधी एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में मजबूत विपक्ष की भूमिका में नज़र आए। जैसा की विपक्ष से अपेक्षा की जाती है, बिल्कुल वैसा ही राहुल गांधी ने किया। वहीं, मामले पर खासकर पीएम मोदी की चुप्पी ने राहुल गांधी को क्रेडिट लेने का एकतरफा मौका भी दे दिया।
राहुल गांधी इससे पहले भी राजनीतिक तौर पर मोदी सरकार के खिलाफ स्कोर किया है। एससी/एसटी एक्ट में बदलाव के खिलाफ भी उन्होंने ठीक से मोर्चा संभाला। सधे हुए अंदाज में उन्होंने मामले का रुख बीजेपी सरकार की तरफ मोड़ दिया। 2 अप्रैल को दलित युवाओं भारत बंद का भी समर्थन कर दिया। आखिर में मोदी सरकार को भी विरोध को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करनी पड़ी। एक तरह से यहां भी राहुल गांधी मोदी सरकार पर भारी पड़ गए।
इसी तरह रोहित वेमुला और जेएनयू केस में भी राहुल गांधी ने लीक से हटकर युवाओं का समर्थन किया और मोदी सरकार को घेरने में कामयाब रहे।
इसके पहले भी राहुल गांधी लीक से हटकर राजनीति करते दिखाई देते रहे हैं। 2011 में उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार में एक्सप्रेसवे को लेकर भट्टा-पारसौल गांव के लोग प्रदर्शन कर रहे थे। प्रशासन किसी को भी यहां पहुंचने की इजात नहीं दे रहा था। लेकिन, राहुल गांधी उस दौरान भी बाइक पर सवार होकर किसानों के बीच पहुंच गए थे और किसानों को अपना समर्थन दिया। किसानों के आंदोलनों में भी राहुल गांधी बराबर शिरकत करते रहे हैं।
सबसे कमाल तो यह है कि उन्होंने सॉफ्ट हिंदुत्व के जरिए बीजेपी के कट्टर-हिंदुत्व को चुनौती दी। ट्रिपल तलाक जैसे मुद्दों पर उन्होंने खामोशी रखी तो वहीं गुजरात विधानसभा चुनाव में मंदिरों में लगातार जाते रहे। कर्नाटक के चुनाव में भी मठों और मंदिरों का भ्रमण जारी है। हालांकि, बीजेपी इस पर लगातार व्यग्य कस रही है, लेकिन आम जनमानस में उनकी यह छवि स्वीकार्य हो रही है। राहुल गांधी समझ चुके हैं कि अगर बीजेपी को ललकारना है तो उसी की बाउंड्री में आकर चुनौती देनी होगी।
(राहुल सिंह इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में राजनीति शात्र से पीएचडी कर रहे हैं। उपरोक्त लेख उनके निजी विचार हैं…)