पिछले 5 सालों में हिमाचल प्रदेश में बसों के बहुत बड़े हादसे हुए हैं। हालांकि सरकारें ये दावा करती हैं कि उन्होंने सड़कों को भी चौड़ा कर दिया है और यातायात की सुविधाओं को भी गंभीरता से लागू किया है। लेकिन, जिस तरह से हादसे पूरे प्रदेश में होते आ रहे हैं उससे सरकार की ये सभी बातें कहीं ना कहीं खोखली नजर आ रही हैं।
हालात ये हैं कि हिमाचल की सड़कों पर औसतन तीन लोग रोजाना हादसों में जान गंवाते हैं। आखिर सड़क हादसों का ये अंतहीन सिलसिला कब थमेगा।
यहां हम आपको बताते हैं कि प्रदेश में सबसे बड़ा हादसा कब और कहां हुआ:-
पहला बड़ा हादसा 11 अगस्त 2012 को चंबा के राजेरा में एक प्राइवेट बस के 250 फीट गहरी खाई में गिरी जिसमें 52 लोग मारे गए थे। जिनमें 18 महिलाएं और 2 बच्चे शामिल थे।
इसके बाद दूसरा बड़ा हादसा 11 सितंबर 2012 को पालमपुर में हुआ, जिसमें 34 लोगों की मौत हुई थी और यह हादसा भी बस के खाई में गिरने से हुआ था।
तीसरा हादसा मंडी में हुआ जो कि 12 फरवरी 2017 को हुआ था इस हादसे में 32 लोगों की जान गई थी।
इसके बाद नूरपुर का ये हादसा अपने आप में पहली बड़ी बस दुर्घटना है जिसमें छोटे-छोटे बच्चों की मृत्यु हुई है और इस हादसे में 28 लोग मारे गए हैं
पांचवा बड़ा हादसा बिलासपुर के रसिया गांव में हुआ था जिसमें 25 लोगों की जान गई थी और इसके साथ ही एक हादसा 20 जुलाई 2017 को रामपुर में हुआ जिसमें 28 लोगों की जान गई थी।
इस तरह से अगर हम प्रदेश में होने वाले बड़े हादसों की बात करें तो इन दुर्घटनाओं का मुख्य कारण खाईयों के किनारे बेरीकेट्स का न होना रहा है।
हालांकि, सरकार खाइयों के किनारे सड़कों पर बेरीकेट्स लगाने की बात भी करती है लेकिन, अब एक बार फिर इन सभी तरह की सुविधाएं जो सरकार दे रही है और दावा कर रही थी हमने लाखों करोड़ों रुपया सड़कों पर ही खर्च कर दिया है तो शायद यह कहीं ना कहीं हम लोगों की जान के ऊपर भारी पड़ता नजर आ रहा है।