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नेताओं की बगावत में वीरभद्र की निजी जीत!

ललित खजूरिया |

हिमाचल पीसीसी अध्यक्ष और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का पार्टी छोड़ रहे नेताओं पर सुर नहीं मिल रहे हैं। पीसीसी अध्यक्ष सुखविंद्र सिंह सुक्खू जहां कांग्रेस के बागी नेता अनिल शर्मा की घर वापसी चाहते  हैं तो, वहीं मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने साफ कहा है कि जो पार्टी छोड़ कर जाना चाहता है वो जा सकता है ,पार्टी पर इसका कोई असर नहीं होगा।

मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के नेतृत्व को लेकर कांग्रेस के कई नेता पहले ही सवाल उठा चुके है। नेतृत्व के खिलाफ ही दिग्गज नेता पंडित सुखराम का परिवार कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गया। कांग्रेस में कैबिनेट मंत्री रहे अनिल शर्मा ने जिस तरह से अलविदा कहा, उससे कांग्रेस खेमे में चुनाव से पहले अभी तक का सबसे बड़ा झटका माना जा रहा है। अनिल शर्मा का कहना था कि वीरभद्र सिंह बार- बार उनके परिवार और उनके पिता पंडित सुखराम का अपमान करते रहे हैं। जो अब बर्दाश्त से बाहर हो गया था। उन्होंने इसके लिए हाल ही में मंडी रैली का उदहारण भी दिया। इस रैली में पंडित सुखराम को न्यौता तक नहीं दिया गया। जबकि, सुखराम रैली में शिरकत करने के लिए दिल्ली से मंडी पहुंचे हुए थे। उस दौरान यह ख़बर समाचार फर्स्ट ने छापी थी कि किसी वरिष्ठ नेता के इशारे पर सुखराम को रैली में शिरकत नहीं करने दिया गया।

पूर्व केंद्री मंत्री पंडित सुखराम शर्मा के परिवार का बीजेपी में जाना निश्चित तौर पर कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है। क्योंकि, इससे पहले भी पंडित सुखराम ने हिमाचल कांग्रेस नेतृत्व के खिलाफ आवाज उठाई है और कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। दरअसल, पंडित सुखराम और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बीच की अदावत आज की नहीं बल्कि काफी पुरानी है। जब पंडित सुखराम ने वीरभद्र के नतृत्व के खिलाफ आवाज उठाई और 1998 में कांग्रेस से अलग होकर सुखराम ने हिमाचल विकास कांग्रेस का गठन किया। उस दौरान  पार्टी को पांच सीटें ही मिली थीं। लेकिन इन पांच सीटों ने बीजेपी की सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई। बीजेपी ने तब धूमल के नेतृत्व में सरकार बनाई थी।

आज फिर इतिहास खुद को दोहराने के कागार पर है। एक बार फिर पंडित सुखराम और उनका परिवार मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के नेतृत्व के खिलाफ बीजेपी को आत्मसात कर लिया है।

हालांकि, वर्तमान उठापटक के बीच  जिस तरह से मुख्यमंत्री वीरभद्र रिलैक्स हैं। उसके मद्देनज़र क्या यह नहीं कहा जा सकता कि इस पूरे प्रकरण की स्क्रीप्ट भी उन्होंने ही तैयार की है? क्योंकि, अर्से से वीरभद्र सिंह और उनका नेतृत्व ही सुखराम सरीखे तमाम वरिष्ठ नेताओं के लिए असंतोष का कारण रहा है। ऐसे में जब वे पार्टी से पलायन कर रहे हैं, तो वीरभद्र के लिए पार्टी के भीतर भी चुनौतियों को लोप होता जा रहा है। यही वजह है कि सीएम इस प्रकरण को शायद अपनी व्यक्तिगत जीत के तौर पर भी देख रहे होंगे। क्योंकि, जब नेताओं के पार्टी छोड़ने पर जब अटकलें लग रही हैं, तो वह भी अटकलों पर तुरंत रिएक्शन दे रहे हैं और साफ-साफ कह रहे हैं कि जो छोड़कर जाना चाहता है वह जा सकता है। उन्होंने इसके लिए बकायदा नाम लेकर अनिल शर्मा और जीएस बाली को संबोधित किया है।

ख्याल रहे कि जिन नेताओं को मुख्यमंत्री ने आड़े हाथों लिया है, वहीं नेता मुख्यमंत्री के नेतृत्व को चुनौती देते रहे हैं। ऐसे में क्या यह कहा जा सकता है कि इन वरिष्ठ नेताओं के पार्टी छोड़ने से क्या वीरभद्र सिंह का रास्ता आसान हो रहा है? क्यों पार्टी का साथ छोड़ने वाले अपनी रुसवाई के लिए सीएम वीरभद्र को ही जिम्मेदार ठहरा रहा है? जाहिर है कहीं ना कहीं पार्टी के भीतर एक गुट उन्हें बर्दाश्त नहीं करना चाहता और वीरभद्र भी उस गुट को बर्दाश्त नहीं करना चाहते।