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NGT के आदेश को लेकर हिमाचल में हाय तौबा क्यों?

पी. चंद |

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने हिमाचल में 16 नवंबर को भवन निर्माण को लेकर अहम आदेश दिए हैं. एनजीटी के आदेशों के बाद भवन मालिक परेशान है , सरकार उनके जख्मो में मरहम लगाने का ढोंग कर रही है और नगर निगम इसको लागू करने की तैयारी में है। इन आदेशों में कहा गया है कि नेशनल हाईवे और अन्य मार्गों के आसपास 3 मीटर तक निर्माण नही किया जा सकेगा। आदेश के उल्लंघन पर पांच लाख रुपए जुर्माना लगेगा। 

एनजीटी के फैसले के बाद भले ही इसको लेकर विरोध के स्वर उठने लगे है लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि एनजीटी को ये आदेश क्यों देने पड़े? जिस तरह से बेतरतीब निर्माण कार्य हिमाचल खासकर शिमला में किया गया और किया जा रहा है ये भूकम्प के झटकों को सहने के लिए मजबूत है। क्या जनता नियमो का सरेआम उल्लंघन करती रही या फिर सरकार एवम नगर निगम निकायों ने उन्हें नियमों की धज्जियां उड़ाने की छूट दी। कई क्षेत्र तो शिमला में ऐसे है जहां रहने से डर लगता है। लोगों ने इस तरह निर्माण कर दिया है कि मुर्दे तक को घर से निकालने के लिए जगह नहीं छोड़ी है।

अब जब एनजीटी ने शिमला और उसके आसपास के क्षेत्रों में ढाई मंजिल से ऊंचे भवन निर्माण भी बैन कर दिया है। साथ ही टिप्पणी की है कि शिमला अब ज्यादा भार नहीं सह सकता है. शिमला प्लानिंग एरिया में किसी भी कोने में मौजूद फॉरेस्ट और ग्रीन एरिया में घर और कमर्शियल निर्माण की अनुमति नहीं होगी। एनजीटी की प्रधान पीठ ने तल्ख टिप्पणी में कहा कि विकास के नाम पर विनाश को दावत नहीं दी जा सकती है।

एनजीटी के ये सवाल क्या उचित नही है जो फिक्र भवन मालिकों को करनी चाहिए थी, सरकार  को इसके लिए ठोस नीति बनांनी चाहिए थी वह काम एनजीटी को क्यों करना पड़ा? सरकार कई बार अवैध भवनों को लेकर पॉलिसी बनती रही जिसकी आड़ में लोगों ने अंधाधुंध अवैध निर्माण किए। लेकिन, कोई भी पुलिस कार्रवाई परवान नहीं चढ़ पाई।

अब वन और ग्रीन एरिया क्षेत्र के बाहर का जो क्षेत्र शिमला प्लानिंग एरिया के प्राधिकरणों के अधीन आता है, वहां निर्माण कड़ी शर्तों और मौजूदा कानूनों के आधार पर निर्माण किया जा सकता है। ऐसे क्षेत्र में दो मंजिला से ज्यादा भवन नहीं बनाया जा सकेगा. एनजीटी ने अपने आदेश में कहा कि सिर्फ सरकारी हॉस्पिटल, स्कूल और जरूरी कार्यालयों को निर्माण में छूट होगी। इसके लिए सुपरवाइजरी कमेटी से एनओसी और मंजूरी लेनी होगी।

अहम बात यह भी है कि वन या ग्रीन एरिया में कोई भवनों में रेनोवेशन के लिए कमेटी ही इजाजत देगी। इसके अलावा इन क्षेत्रों में अवैध निर्माण को गिराने के आदेश भी दिए गए हैं।  ग्रीन, फॉरेस्ट और कोर एरिया में निर्माण प्रतिबंधित रहेगा। इसके अलावा, कार्ट सर्कुलर रोड के आसपास भी पूरी तरह निर्माण पर रोक रहेगा। बता दें कि शिमला में 17 ग्रीन बेल्ट एरिया हैं। एनजीटी के आदेश से शिमला शहर का 70 फीसदी एरिया आएगी।

ट्रिब्यूनल ने प्रदेश में सभी तरह के अवैध निर्माणों को नियमित करने पर प्रतिबंध लगाया और स्पष्ट किया है कि यदि किसी ने कोर, ग्रीन और फॉरेस्ट एरिया से बाहर निर्माण को नियमित करने के लिए 13 नवंबर 2017 से पहले संबंधित विभाग के पास आवेदन किया है तो उसे आवासीय भवन निर्माण को नियमित करने के लिए पांच हजार रुपये प्रति वर्ग फुट तथा व्यवसायिक भवन निर्माण को नियमित करने के लिए दस हजार रुपये प्रति वर्ग फुट पर्यावरण मुआवजा देना होगा।

13 नवंबर के बाद किए आवदेन पर विचार नहीं होगा। एनजीटी के इन आदेशो को यदि प्राकृतिक आपदाओं खासकर भूकंप आदि बड़ी आपदाओं से जोडक़र देखा जाए तो ये आदेश गलत नहीं है। हां यदि इन आदेशों को फिर राजीनीतिक लाभ और स्वहित के लिए देखा जाए तो फिर सबका भगवान ही मालिक है।