हिमाचल प्रदेश के वर्तमान मुख्य मंत्री वीरभद्र सिंह ने आज प्रातः सोलन ज़िले के अर्की विधान सभा क्षेत्र से कांग्रेस(आई) प्रत्याशी के रूप में अपना नामांकन दाखिल किया । नामांकन के समय उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह और पुत्र विक्रमादित्य के अलावा चम्बा के कद्दावर नेता हर्ष महाजन मौजूद थे । वीरभद्र सिंह ने शिमला ज़िला को छोड़ कर साथ लगते ज़िला सोलन से चुनाव लड़ने का निर्णय लेकर राजनैतिक पंडितों के समक्ष कुछ अनसुलझे सवाल खड़े कर दिए।
इससे पूर्व वर्ष 2012 का विधान सभा चुनाव उन्होंने शिमला(सदर) से लड़ा था । शिमला सदर सीट अपने बेटे विक्रमादित्य के लिए छोड़ने की बात तो समझ आती है लेकिन ठियोग से पूर्व घोषित निर्णय को बदलने का क्या कारण रहा होगा यह विचारणीय है।
वीरभद्र सिंह निर्विवाद हिमाचल के ऊपरी क्षेत्र, जिसे पुराने हिमाचल के नाम से भी जाना जाता है, के लोकप्रिय कांग्रेसी नेता हैं। अपने दीर्घकालीन राजनौतिक अनुभवों के दृष्टिगत उनके विधान सभा क्षेत्र बदलने के निर्णय को हल्के से नहीं लिया जा सकता। वीरभद्र सिंह शिमला ज़िले से ही चुनाव लड़ते आये हैं और उन्हें लगभग ना के बराबर पराजय का मुंह देखना पड़ा है। ऐसी स्थिति में जहां वीरभद्र का जनाधार इतना ठोस हो उनका शिमला ज़िला छोड़ कर ज़िले से बाहर चुनाव लड़ना हैरान कर देने वाला है।
वैसे अर्की विधान सभा क्षेत्र में कांग्रेस और बीजेपी, दोनों का वर्चस्व रहा है। नौवें दशक से पूर्व के चुनावों में अर्की से पाल-बंधुओ का दबदबा रहता था। नगीन चन्द पाल भारतीय जनता पार्टी के नेता थे और हीरा सिंहपाल कांग्रेस के। 1993 से 2003 तक इस सीट से कांग्रेस के धर्मपाल ठाकुर विजयी होते रहे। 2007 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के गोबिंद राम शर्मा ने कांग्रेस से यह सीट छीन ली थी। तब से यह सीट बीजेपी के पास थी। वर्ष 2017 में अगर वीरभद्र सिंह यहां से चुनाव जीत जाते हैं तो दस वर्षों के अंतराल के बाद पुनः इस सीट पर कांग्रेस काबिज़ होगी ।
वास्तव में इससे पहले वीरभद्र सिंह ने शिमला ज़िले के ठियोग विधान सभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने का मन बनाया था लेकिन फिर अचानक अपना निर्णय बदल दिया। दरअसल शिमला ज़िला में कोटखाई के गुड़िया बलात्कार मामले में वीरभद्र सरकार की खूब फजीहत हुई थी । यहां तक कि सी बी आई ने केस में संलिप्त पुलिस वालोँ को भी गिरफ्तार कर लिया था । यह मामला हाई कोर्ट में विचारधीन है । इस प्रकरण में माननीय उच्च न्यायालय की कोई भी तल्ख़ टिप्पणी वीरभद्र और उनके नेतृत्व में प्रदेश में चुनाव लड़ रही कांग्रेस पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है।
इसके अलावा आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में प्रवर्तन निदेशालय की तलवार तो वीरभद्र पर हर वक्त लटकी हुई है। इन मुद्दों पर प्रदेश में विपक्षी दलों ने समय-समय पर खूब विरोध जताया था और वीरभद्र की गुस्से से भरी टिप्पणियों ने जन-आक्रोश और बढ़ाया था। शायद वीरभद्र के राजनैतिक सलाहकारों ने इसी कारण वीरभद्र को शिमला ज़िला छोड़ कर सोलन ज़िला की ओर बढ़ने की सलाह दी हो।
(ऊपरोक्त विचार वरिष्ठ स्तंभकार विवेक अविनाशी के हैं। विवेक अविनाशी काफी लंबे अर्से से हिमाचल की राजनीति पर टिप्पणी लिखते रहे हैं और देश के नामचीन पत्र-पत्रिकाओं में इनके विचार पब्लिश होते रहे हैं।)