हिमाचल मैं उपचुनाव के एलान के साथ ही कि क्या जनता मुख्यमंत्री जयराम के कामों पर मोहर लगाएगी। ये चर्चा उपचुना की घोषणा के साथ ही आम हो चुकी है। विधानसभा चुनाव के बाद जहाँ कांग्रेस के नेता जयराम को एक्सीडेंटल मुख्यमंत्री का खिताब दिए हुए हैं। वहीं, बीजेपी का भी एक गट पूरी तर्हां से जयराम के विरोध मैं अक्सर खड़ा रहता है। अब सरकार उपचुनाव में है। ऐसा भी नहीं है कि उपचुनाव में सत्ताधारी दल की ही जीत हमेशा हुई हो ,कांग्रेस 4 बार तो बीजेपी भी एक बार उप चुनाव हार चुकी है। इस बार तो लड़ाई ना सिर्फ कांग्रेस से है बल्कि बीजेपी के बागियों से भी जयराम को राजनीतिक लड़ाई लड़नी पड़ेगी।
इसके साथ ही सरकार के कई फैसलों पर भी विवाद हुए हैं। जनता का गुस्सा भी कई मामलों में फूटा है। विशेष रूप से बाहर के लोगों को नौकरियां देने के मामले में सरकार की खासी फजीहत हुई । माननीयों के भत्ते बढाने को लेकर भी सरकार बैकफुट में रही।
इसके साथ ही जब बीजेपी की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री का चेहरा जयराम नहीं बल्कि धूमल थे। धूमल को प्रदेश में मास लीडर के रूप में देखा जाता है। लेकिन चुनाव में हार के बाद उन्हें भी एक तरह से साइड लाइन कर दिया गया, और यही से जयराम को चुनौती है कि क्या वो उप चुनाव में सरकार के कामों को भुना पाएंगे या नहीं । कारण, मौजूदा जो माहौल बना हुआ है। उसमें नेता सरकार के काम की चर्चा नहीं बल्कि सिर्फ धारा 370 की चर्चा कर रहें हैं और ऐसा लग रहा है की यही वो धारा है जिसका है जयराम को सहारा है।
अब देखना ये है की बिन धूमल बीजेपी की ये पीढ़ी चुनाव में कैसा काम करती है और दूसरी बड़ी बात की क्या धूमल चुनाव प्रचार में अपनी सक्रियता दिखायेंगे क्योंकि नामांकन में वो नहीं गए थे ।