विजय कुमार।
करसोग के एक स्कूल की 13 वर्षीय छात्रा की नशे की चपेट में आने की खबर इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है। जिस उम्र को खुशहाल जीवन जीने का आधार माना जाता है उस उम्र में यह किशोरी नशे की लत में छटपटा रही है। यह मामला महज इसलिए हैरतअंगेज नहीं है कि एक बालिका नशे के चंगुल में फंस गई है बल्कि इसलिए है कि नशे का मकड़जाल छोटी उम्र के किशोरों को अपनी गिरफ्त में ले रहा है।
इस घटना से यह भी संकेत मिलते हैं कि प्रदेश मे नशीले पदार्थों का इस्तेमाल कंट्रोल होने के बजाय बढ़ता जा रहा है। यह घटना प्रदेश में चल रहे नशे से बचाव और उपचार कार्यक्रमों पर भी सवाल खड़े करती है। हालांकि रोचक तथ्य है कि जिला मंडी नशा मुक्त भारत अभियान का हिस्सा भी है जिसके अंतर्गत प्रदेश के चार जिले शामिल किया गया है।
नशे की बीमारी से जूझ रही इस बालिका के केस को जिस तरह से डील किया गया वो निराशाजनक है। मामला प्रकाश में आने के बाद स्कूल प्रबंधन आवश्यक प्रोटोकॉल का पालन करने में नाकाम रहा। स्कूल प्रबंधन ने जरूरी काउंसलिंग, ट्रीटमेंट और सपोर्ट देने के बजाय मामला पुलिस के हवाले कर दिया। ताज्जुब की बात यह है मीडिया को बाकायदा ब्रीफ़ किया जा रहा है।
इस फेहरिस्त को देखते हुए सवाल खड़ा होता है कि प्राइमरी और सेकेंडरी प्रीवेन्शन के नाम पर चलने वाले कार्यक्रम जमीन पर क्यों नहीं उतर पाए। इस तरह के हालातों से निपटने के लिए शिक्षकों को हुनरमंद क्यों नहीं किया। मीडिया और पुलिस संवेदीकरण कार्यक्रम कहां रह गए। क्यों बचाव मुहिम सरकारी फाइलों में सिमट के रह गई।
चिंता इस बात की भी है कि अगर प्रदेश में पुख्ता बचाव कार्यक्रम संचालित नहीं किए गए तो हिमाचल को उड़ता हिमाचल बनने में देर नहीं लगेगी। इसके लिए “वन एंड डन” अप्रोच से बाहर निकल कर रेगुलर कार्यक्रम क्रियान्वित करने की आवश्यकता रहेगी।
नोट- (लेखक विजय कुमार वरिष्ठ पत्रकार और समाजसेवी हैं. फिलहाल, राष्ट्रीय स्तर पर नशे के खिलाफ मुहिम से जुड़े हुए हैं और खासकर हिमाचल प्रदेश में सक्रियता से काम कर रहे हैं.)