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एक पूर्व विधायक जो बेचने लगा चूड़ियां, जानिए कैसे शुरू हुई हिमाचल में MLA को पेंशन

एक तरफ जहां सरकारी कर्मचारी 58-60 साल की उम्र तक सेवाएं देने के बाद पेंशन के हकदार बनते हैं तो वहीं दूसरी और विधायक शपथ लेने के तुरंत बाद ही पेंशन लेने के हकदार हो जाते हैं…

डेस्क |

एक तरफ जहां सरकारी कर्मचारी 58-60 साल की उम्र तक सेवाएं देने के बाद पेंशन के हकदार बनते हैं तो वहीं दूसरी और विधायक शपथ लेने के तुरंत बाद ही पेंशन लेने के हकदार हो जाते हैं। एक बार शपथ हो गई तो उसके बाद पांच साल तक विधायक रहें या नहीं, ताउम्र पेंशन के लिए पात्र हो जाते हैं। अब तो विधायकों की पेंशन भी एक लाख के करीब हो गई है..

भले ही आज विधायकों को भारी पेंशन मिलती हो लेकिन एक दौर था जब हिमाचल में विधायक सिर्फ जनता की सेवा के लिए आते थे और उस समय उन्हें पेंशन भी नहीं मिलती थी. यदि कोई विधायक दोबारा विधायक न बने तो उसे अपने परिवार का पालन पोषण करना भी मुश्किल हो जाता था..

कैसे शुरू हुई हिमाचल में विधायकों को पेंशन

आप शायद सोच भी नहीं सकते के हिमाचल प्रदेश के जिला हमीरपुर के विधानसभा क्षेत्र भोरंज (पूर्व में मेवा) के पूर्व विधायक मेवा से 1967 से 1972 तक विधायक रहे. दूसरी बार वह जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर 1977 से 1980 तक विधायक रहे. लेकिन अमर सिंह जब चुनाव हारे तो उनको परिवार का गुजारा चलाने के लिए चूड़ियां बेचनी पड़ी. तत्कालीन सीएम यशवंत सिंह परमार को जब यह बात पता चली कि पूर्व विधायक चूड़ियां बेचते हैं. उसके बाद यशवंत सिंह परमार की सरकार ने पेंशन प्रणाली की व्यवस्था की थी.

दरअसल हुआ यूं कि साल 1974 में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार हमीरपुर में एक मेले में बतौर मुख्यातिथि पहुंचे थे. मेले में उनकी नजर पूर्व विधायक अमर सिंह चौधरी पर पड़ी. अमर सिंह उस मेले में एक दुकान लगाकर चूड़ियां बेच रहे थे. चूड़ियां बेचते हुए देख परमार ने उनसे जब पूछा तो उन्होंने बताया कि विधायकी के बाद अब आय का कोई साधन नहीं बचा. सो मेलों में दुकान लगाते हैं और अपना परिवार चलता हैं.

पूर्व विधायक की इस बात को सुनकर परमार का दिल पसीजा और उन्होंने अगली ही कैबिनेट बैठक में सभी पूर्व विधायकों को 300 रूपये पेंशन देने का फैसला लिया. तब से बढ़ते बढ़ते आज ये पेंशन एक लाख के करीब पहुंच गई है.