पांच राज्यों में मिले भारी जनसमर्थन से बीजेपी उत्साह से लबरेज है। पार्टी के सामने अब अगला निशाना कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश है। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने मीडिया को दिए इंटरव्यू में कर्नाटक और हिमाचल को अपना अगला लक्ष्य बताया है। इसी के मद्देनजर हिमाचल प्रदेश में पार्टी के दो ध्रुव शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल एक मंच से हल्ला बोलते नज़र आ रहे हैं।
दरअसल, आगामी चुनाव को देखते हुए बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पहले से ही कद्दावर नेताओं को एकजुट होने के निर्देश दिए हैं। यही वजह है कि पहले जहां शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल राज्य-स्तरीय समारोह में एक साथ शिरकत नहीं करते थे, अब वे एक मंच पर भाषण देते हुए दिखाई देने लगे हैं। हाल ही में धर्मशाला में आयोजित ‘कांग्रेस हटाओ, प्रदेश बचाओ’ रैली में दोनों नेताओं को एक साथ मंच पर देखा गया। अब ये दोनों नेता हमीरपुर में भी एक साथ नज़र आने वाले हैं। राजनीति के जानकारों के लिए यह एक दिलचस्प मौका है, क्योंकि दोनों ही नेता एक दूसरे के धुर विरोधी माने जाते रहे हैं।
वहीं, दूसरी तरफ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा भी लगातार प्रदेश का दौरा कर रहे हैं। शिमला और सोलन में पब्लिक मीटिंग के बाद लगातार वह अपनी पार्टी के नेताओं को संपर्क में हैं। केंद्र से संचालित योजनाओं में वह हिमाचल का ख़ास ख्याल रख रहे हैं। चुनाव के मद्देनज़र उनका एक-एक बयान काफी नपा-तुला है।
कुल मिलाकर बीजेपी के तमाम ध्रुव सार्वजनिक मंच पर इकट्ठा दिखाई देने का प्रयास कर रहे हैं। प्रदेश बीजेपी की लीडरशिप शाह और मोदी के इशारों पर जी-जान से जुट गई है।
वीरभद्र सिंह की महत्वाकांक्षा बीजेपी के लिए संजीवनी
एक तरफ बीजेपी की सेना जब पूरी तैयारियों के साथ मैदान में उतर आई है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस अभी आंदरूनी कलह में व्यस्त है। ऊपर से नीम चढ़ा करेला यह कि दिल्ली में राहुल गांधी को लेकर कांग्रेस के दूसरे बड़े नेताओं का असंतोष बढ़ रहा है। उदाहरण के तौर पर कांग्रेस में 40 साल से अधिक समय तक अपनी सेवा देने वाले कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एसएम कृष्णा बीजेपी में शामिल हो गए। कृष्णा यूपीए की सरकार में विदेश मंत्री भी रहे थे।
दिल्ली की तरह ही हिमाचल में भी वीरभद्र सिंह के नेतृत्व को लेकर कांग्रेस के अधिकांश नेता पचा नहीं पा रहे हैं। माना जा रहा है कि चुनाव से ऐन पहले पार्टी के कुछ नेता अपना पाला बदल सकते हैं। इसका एक मात्र कारण है मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का मंत्रिमंडल के साथ-साथ पार्टी पर भी अपना दबदबा कायम रखने की मंशा। यही वजह है कि आए दिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू के खिलाफ उनके बयान अख़बारों की सुर्ख़ियां बन रहे हैं। भोरंज उपचुनाव में टिकट वितरण को लेकर भी कांग्रेस का आंदरूनी कलह जनता के बीच आ चुकी है।
बीजेपी के कद्दावर नेता आपसी मतभेद भुलाकर जनता के बीच आ चुके हैं। लेकिन, बिखरी हुई कांग्रेस अपनों को ही नीचा दिखाने में व्यस्त है। ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी की हालत अगर बद से बदतर हो जाए तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए…।