बीजेपी की कथनी और करनी में कितनी समानता है ये इसी बात से पता चलता है की हिमाचल के कई दिग्गज चुनाव हार गए लेकिन आज तक किसी पदाधिकारी पर कार्यवाही नहीं हुई। इस बात की चर्चा अब फिर से राजनितिक गलियारों में शुरु होने लगी है। क्योंकि पार्टी एक बार फिर से चुनाव में जाने वाली है और पार्टी के भीतर अनुशासन को लेकर चर्चा जोरों पर है। पिछले चुनाव में कुछ ऐसे दिग्गज भी हारे हैं जिनकी हार को लेकर ही पार्टी के भीतर कहीं न कहीं प्रशन चिन्ह लगा था।
पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल, प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सत्ती, नेता रविंदर रवि, गुलाब सिंह ठाकुर, बलदेव शर्मा जैसे वो नाम है जिन्होंने शायद ही कभी ये सोचा होगा की वो चुनाव हार सकते हैं। विशेष रूप से यहां पूर्व मुख्यमंत्री धूमल और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती की बात करें तो दोनों की हार को बीजेपी नेता ऐतिहासिक मानते हैं।
अब फिर चुनाव है और जिनके बड़े नेताओं के अपने ही बूथ डाउन गए थे उनके ऊपर तो कार्यवाही वाली होने वाली थी लेकिन जिन पदाथिकारियों के रहते ये दिग्गज धराशाई हुए उनको लेकर भी ना बूथ लेवल पर और ना ही मंडल और जिला लेवल पर कोई कार्यवाही हुई। सबसे बड़ा उदाहरण यहां सांसद शांता कुमार का है जिनका विधानसभा चुनावों अपना ही बूथ डाउन था ,उसी तरह सुजानपुर में भी कई दिग्गजों के बूथ डाउन थे।
चुनाव के बाद बीजेपी कार्य समिति की बैठक मैं ये मुद्दा उठा भी लेकिन जीत के जश्न में कहीं न कहीं विलुप्त हो गया। या ये कहें की जीत के जश्न में इन दिग्गजों के हार के कारणों पर संगठन ने ही चर्चा करना उचित नहीं समझा और वो सारी ग्राउंड रिपोर्ट्स धरी की धरी रह गई।
वहीं, प्रदेश बीजेपी सचिव विजय पाल का कहना है कि लोकसभा चुनावों को धयान में रखकर पार्टी में निर्णय हुआ था कि पुरानी बातें छोड़कर अब पार्टी एकजुट होकर लोकसभा चुनावों में जा रही है। इसलिए पदाधिकारियों पर कोई कार्यवाही ना करके अगली तैयारी की जाएगी।