''हम जहां से खड़े होते हैं, लाइन वहीं से शुरू हो जाती है।" यह लाइन भले ही एक फिल्म में अमिताभ बच्चन ने बोली थी, लेकिन इसका तेवर हिमाचल के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह पर सटीक बैठता है। जिस अंदाज में वीरभद्र सिंह ने खुद की और अपने बेटे के टिकट की घोषणा की है वह कम से कम यही दर्शाता है कि 'हम जहां से खड़े होते हैं, टिकट वहीं आ जाता है।'
कांग्रेस का हाईकमान भले ही दस-जनपथ में रहता हो। लेकिन, मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह खुद में हाईकमान की तरह हैं। अलबत्ता कहा जा सकता है कि ना खाता, ना बही…जो वीरभद्र सिंह कहे वही सही। हाईकमान हो या प्रदेश कांग्रेस कमेटी, जो मुख्यमंत्री ठान लेते हैं होता वही है।
एक ओर जहां कांग्रेस के तमाम कार्यकर्ताओं ने टिकट की दावेदारी के लिए 25 हजार रुपये जमाकर कर फॉर्म भरे थे। वहीं, वीरभद्र सिंह ने अपने बेटे को बिना टिकट वितरण समीति से मशवरा किए शिमला ग्रामीण का उम्मीदवार घोषित कर दिया। इसके अलावा खुद के भी ठियोग से लड़ने का ऐलान कर जता दिया कि हिमाचल कांग्रेस में सिर्फ उन्हीं की चलती है।
हालांकि, शुक्रवार को कांग्रेस हाईकमान के साथ तमाम नेताओं की बैठक हुई, जिसमें टिकट पर फाइनल मुहर लगाने को लेकर चर्चा की गई। बैठक में बेशक मुख्यमंत्री नहीं पहुंचे, लेकिन जिस तरह वह प्रत्याशियों का ऐलान कर रहे हैं उससे लगता है कि उनके हिस्से में टिकट वितरण का एक ठोस अधिकार है। जिसकी एक्सरसाइज हाईकमान की बैठक से पहले ही करना शुरू कर दिया है।
यही वजह है कि मुख्यमंत्री के चेहते भी अपनी टिकट को पक्का मान कर चल रहे हैं और लिस्ट फाइनल होने से पहले ही कांग्रेस प्रत्याशी के नाम पर वोट डालने की अपील कर रहे हैं।
अब जरा राजेंद्र राणा के इस विज्ञापन को ही देखें
नीचे की तस्वीर एक विज्ञापन है। जिसमें सीएम के नजदीकी माने जाने वाले रजिंदर राणा वोट मांगते हुए दिखाई दे रहे हैं। टिकट पर बिना फैसला हुए राजेंद्र राणा खुद को सुजानपुर से कांग्रेस का कैंडिडेट बता रहे हैं और वोट की अपील कर रहे हैं।
इस पोस्टर को देखकर साफ कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री के साथ-साथ उनके क़रीबी भी अपना टिकट पक्का मान कर चल रहे हैं।
कांग्रेस के युवा कार्यकर्ताओं के साथ क्या धोखा है?
जिस तरह से भारी संख्या में युवा कांग्रेसी नेताओं ने पैसे खर्च कर चुनाव की दावेदारी पेश की है और आस लगाए हैं कि उनपर आलाकमान निष्पक्ष तरीके से गौर करने वाला है, तो यह शायद भ्रम के सिवा कुछ ना हो। दिल्ली में हुई बैठक के बाद दो दिन के भीतर ही टिकटों का ऐलान शुरू हो जाएगा। मगर, जिस अंदाज में मुख्यमंत्री ने अपना और अपने बेटे का टिकट फाइनल किया है उसके मद्देनज़र परफॉर्मेंस के बेसिस पर युवाओं के साथ किया गया वादा खटाई में पड़ता दिखाई दे रहा है।