हिमाचल प्रदेश में मेडिकल सुविधाओं की स्थिति क्या है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। हर बड़ा और छोटा अस्पताल डॉक्टरों और स्टाफ की कमी की मार झेल रहा है। लेकिन, इस बीच प्रदेश के डॉक्टरों की अनेक तस्वीरें सोशल मीडिया पर घूम रहीं हैं, जिनमें वे काले फीते बांधे या बिल्ला लगाए दिखाई दे रहे हैं।
जब समाचार फर्स्ट ने इसकी टोह ली तो पता चला कि डॉक्टरों का संगठन AIFGDA के आह्वान पर सभी डॉक्टर काले बिल्ले या काला फीता बांधकर एक दिन का विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। दरअसल, संगठन की मांग है कि जो डॉक्टर सरकारी सेवाओं में काम कर रहे हैं, उन्हें पोस्ट ग्रेजुएट में दाखिले लिए 50% का आरक्षण दिया जाए। इनका तर्क है कि चूंकि यह फायदा पहले मिलता रहा है, लिहाजा इसको फिर से बहाल किया जाए। इसके अलावा डॉक्टरों की मांग है कि पूरे देश में एक समान सैलरी भी लागू की जाए।
डॉक्टरों का तर्क है कि जिन डॉक्टरों को यह लाभ मिलेगा वह फिर से सरकारी सेवा में अपना योगदान देते रहेंगे। जबकि, डायरेक्ट पीजी करने वाले डॉक्टर ना तो सरकारी अस्पताल और ना ही प्रदेश में टिकता है।
डॉक्टरों का पलायन रोकने में आरक्षण मददगार कैसे होगा?
सवाल ये उठता है कि 50 फीसदी आरक्षण और एक समान सैलरी करने से क्या डॉक्टरों का पलायन रुकेगा? क्योंकि, इसमें प्राइवेट अस्पतालों की मलाईदार सैलरी भी एक बड़ा कारण है। इस बाबत जब समाचार फर्स्ट ने हिमाचल मेडिकल ऑफिसर एसोसिएशन के महासचिव डॉक्टर पुष्पेंद्र वर्मा से सवाल किया तो उनका जवाब था, " हिमाचल ही नहीं बल्कि पूरे भारत में डॉक्टरों को लेकर कोई ठोस पॉलिसी नहीं है। जहां तक बात 50 फीसदी आरक्षण की है, तो यह प्रदेश हित और डॉक्टरों के हित के लिए बेहद जरूरी है। क्योंकि, अगर 3 साल के बाद किसी डॉक्टरों को आरक्षण के तहत पीजी में दाखिला मिलता है और उसके साथ ही सरकार 5 साल का बॉन्ड साइन कराती है, तो कुल मिलाकर ऐसे ही उसका कार्यकाल 10 साल से ऊपर चला जाएगा। साथ ही साथ सैलरी भी अच्छी-खासी तब तक हो जाएगी। ऐसे में डॉक्टर स्थायी रहना ही उचित समझेगा और काफी हद तक प्रदेश में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की कमी पूरी हो सकती है।"
डॉक्टरों की तरफ से दिए गए तर्क और सरकारी पहल को जनता खुद ही कसौटी पर कस सकती है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद से ही डॉक्टरों की नाराजगी ज्यादा दिखाई दे रही है, जिसमें दूर-दराज के क्षेत्रों में काम करने वाले डॉक्टरों को सीधे 30 फीसदी मार्क्स मिल जाते हैं।
वेतन में अंतर है पलायन का बड़ा कारण
समाचार फर्स्ट ने जब प्रदेश के कई सरकारी डॉक्टरों से बात की तो वेतन का मुद्दा सबसे बड़ा रहा। आज के प्रोटेस्ट में डॉक्टरों की एक यह भी मांग है कि उनका वेतन केंद्रीय स्तर का किया जाए। दरअसल, केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा कई सेवाओं के लिए वेतन में अंतर पाया जाता है। ऐसे में डॉक्टरों की मांग है कि वेतन को एक समान पूरे हिंदुस्तान में किया जाए। अगर वेतन में अंतर खत्म कर दिया जाएगा तो पलायन में भी कमी आएगी।
हिमाचल में डॉक्टरों की भारी कमी
हिमाचल प्रदेश में डॉक्टरों और स्टाफ की भारी कमी है। एक आंकड़े के मुताबिक प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में फिलहाल 600 डॉक्टरों की सख़्त जरूरत है। स्थिति यहां तक ख़राब है कि जिला मुख्यालयों के अस्पतालों में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की काफी कमी है। समाचार फर्स्ट ने कांगड़ा समेत कई जिलों के अस्पातालों में डॉक्टरों और सुविधाओं की तस्दीक की थी। जिनमें सुविधाओं से ज्यादा मैन-पावर बड़ा चैलेंज दिखाई दिया। यहां तक कि स्त्री रोग विशेषज्ञ की कमी हर जिला मुख्यालयों में है।
सरकारी अस्पताल स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के अभाव में सिर्फ रेफरल सेंटर बनकर रह गए हैं। सरकारी अस्पतालों में एक अनुमान के मुताबिक प्रति दिन का ओपीडी ही 1 हजार से अधिका का होता है। ऐसे में मौजूदा डॉक्टरों के ऊपर भी जरूरत से ज्यादा बोझ रहता है। नतीजा आए दिन अस्पताल द्वारा मेडिकल नेग्लिजेंस की शिकायत मिलती रहती है।