चिरनिद्रा में सोई देश की पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज

<p>भारतीय जनता पार्टी की दिग्गज नेता और भारत की पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का 67 साल की उम्र में एम्स में निधन हो गया। मंगलवार रात दिल का दौरा पड़ने के बाद बेहद नाजुक हालत में उन्हें रात 9 बजे एम्स लाया गया लेकिन डॉक्टर उन्हें बचा नहीं सके। देर रात उनके पार्थिव शरीर को जंतर-मंतर स्थित उनके आवास पर लाया गया। आज सुबह अंतिम दर्शन के लिए उनके पार्थिव शरीर को पार्टी कार्यालय में रखा गया है। सुबह 10:30 बजे तक उनके अंतिम दर्शन कर सकेंगे। इसके बाद 11 बजे बीजेपी मुख्यालय में उनके पार्थिव शरीर को लाया जाएगा।&nbsp; जिसके बाद दोपहर 3 बजे उनका अंतिम संस्कार होगा।</p>

<p>इनके निधन पर कई नेताओं ने ट्वीट कर दुःख जताया है। उन्होंने अनुच्छेद 370 को खत्म करने पर अपना अंतिम ट्वीट लिखा था। अपने आखिरी ट्वीट में सुषमा स्वराज ने लिखा कि प्रधान मंत्री जी – आपका हार्दिक अभिनन्दन। मैं अपने जीवन में इस दिन को देखने की प्रतीक्षा कर रही थी। @narendramodi ji – Thank you Prime Minister. Thank you very much. I was waiting to see this day in my lifetime.&quot;</p>

<p><img src=”/media/gallery/images/image(4187).jpeg” style=”height:254px; width:515px” /></p>

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<span style=”color:#c0392b”><strong>जीवन इतिहास</strong></span></p>

<p>सुषमा स्वराज 14 फरवरी 1957 को को हरियाणा राज्य की अंबाला छावनी में, हरदेव शर्मा और लक्ष्मी देवी के घर हुआ था। उनके पिता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख सदस्य रहे थे। 22 साल की उम्र में वह हरियाणा की विधायक के रुप में सत्ता में आई थी। वे वर्ष 2009 में भारत की भारतीय जनता पार्टी द्वारा संसद में विपक्ष की नेता चुनी गयी थीं, इस नाते वे भारत की पन्द्रहवीं लोकसभा में प्रतिपक्ष की नेता रही हैं। इसके पहले भी वे केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में रह चुकी हैं तथा दिल्ली की मुख्यमन्त्री भी रही हैं। वे साल 2009 के लोकसभा चुनावों के लिये भाजपा के 19 सदस्यीय चुनाव-प्रचार-समिति की अध्यक्ष भी रही थीं। वह भारतीय महिला राजनीतिज्ञ और भारत की पूर्व विदेश मंत्री थीं।</p>

<p>अंबाला छावनी में जन्मी सुषमा स्वराज ने एसडी कालेज अंबाला छावनी से बीए और पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से कानून की डिग्री ली। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पहले जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। आपातकाल का पुरजोर विरोध करने के बाद वे सक्रिय राजनीति से जुड़ गयीं। साल 2014 में उन्हें भारत की पहली महिला विदेश मंत्री होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जबकि इसके पहले इंदिरा गांधी दो बार कार्यवाहक विदेश मंत्री रह चुकी थीं। कैबिनेट में उन्हें शामिल करके उनके कद और काबिलियत को स्वीकारा। दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री और देश में किसी राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता बनने की उपलब्धि भी उन्हीं के नाम दर्ज़ है।</p>

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