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राजनीति के इस कुरुक्षेत्र में अभी सुलह है, असल जंग तो आगे है…

अमृत कुमार तिवारी |

हिमाचल कांग्रेस के राजनीतिक कुरुक्षेत्र में प्रदेश प्रभारी सुशील कुमार शिंदे ने सीज़फायर करा दिया है। पीसीसी अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह में सुलह के दावे किए जा रहे हैं। विगत दो दिनों में दोनों नेताओं के बयानों में काफी नरमी और सहयोग करने के दावे भी सामने आ रहे हैं।

लेकिन, अभी तक के इस जंग में निसंदेह पीसीसी अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू की साख और मज़बूत हुई है। तेज आंधी में जो वृक्ष टिका रहता है कालांतर में वह अपनी मज़बूती का परिचय देता है। यही बात सुक्खू पर भी लागू होती है। वीरभद्र समर्थकों की आंधी में सुक्खू ने मज़बूती से अपना मोर्चा संभाले रखा और परिणाम सबके सामने हैं। अब चुनाव तक उनका पद सुरक्षित है, यही नहीं उन्हें और भी सख्ती से कार्रवाई करने का साहस भी आ गया है। इसका स्पष्ट उदाहरण उनके खिलाफ नारेबाजी करने वाले यूथ कांंग्रेस के महासचिव विनोद जिंटा का उनके पद से हटाया जाना है। हालांकि, अब यह चर्चा है कि पार्टी में सौहार्द कायम करने के लिए सुक्खू जिंटा की बहाली को हरी झंडी दे सकते हैं।

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह लगातार सुक्खू को चुनाव पूर्व उन्हें उनके पद से हटाने के लिए मुहिम छेड़े हुए थे। लेकिन, उसमें उनकी कोशिश बेकार साबित हुई है। यही नहीं समर्थकों की नारेबाजी का उल्टा उन्हें ही खामियाजा उठाना पड़ा है। जिस तैयारी के साथ वीरभद्र समर्थक सुक्खू के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे और इसका बकायदा सीएम के फेसबुके पेज से लाइव भी किया जा रहा था… अगले ही क्षण इनमें से एक का वारंट निकल गया और खुद मुख्यमंत्री बैकफुट पर दिखाई दिए। युवा कांग्रेस अध्यक्ष विक्रमादित्य ने सामूहिक रूप से कार्यकर्ताओं को नारेबाजी नहीं करने की सलाह दी और बताया कि इससे उल्टा मुख्यमंत्री की छवि धूमिल हो रही है।

इन घटनाक्रमों को देखकर कहा जा सकता है कि चौबेजी चले थे छब्बे बनने, अब दूबेजी बनकर लौटे हैं। इस लिहाज से प्रदेश प्रभारी सुशील कुमार शिंदे का दौरा आखिरकार सुक्खू के लिए सुखदायक साबित हुआ है। सुक्खू की राह को प्रदेश प्रभारी ने काफी आसान कर दिया है।

ख़बर यह भी है कि शिंदे के साथ बैठक के दौरान कांग्रेस के कई पदाधिकारियों ने संगठन के मुकाबले सरकार की गतिविधियों को कटघरे में खड़ा किया। इनमें जिलाध्यक्ष नरदेव कंवर, करण तथा नरेश ठाकुर लफ्ज़ काफी सख़्त और तेवर भरे थे। इनका कहना था कि सरकार हारे हुए लोगों को सह दे रही है और बीजेपी से इंपोर्ट किए गए लोगों को प्रमुख पदों से नवाज रही है। जबकि, कांग्रेस के वे लोग जिन्होंने अपना जीवन कांग्रेस में लगा दिया उनके लिए सरकार कभी खड़ी नहीं हुई।

इसके हटकर सुक्खू ने अपना संबोधन काफी भावुक रखा। उनकी भावुकता के पीछे छिपी आक्रमकता साफ-साफ दिखाई दे रही थी। सुक्खू ने बताया कि उन्होंने किन विपरीत परिस्थितियों में भी संगठन का काम किया। हालांकि, वीरभद्र सिंह के पक्ष से भी यह बात निकली कि सरकार को क्रिटिकल मोमेंट में भी संगठन का साथ नहीं मिला।

नेताओं के संबोधन और उनका पक्ष सुनने के बाद शिंदे ने बताया कि वे तमाम शिकायतों को आलाकमान के सामने पेश करेंगे। लेकिन, आगामी चुनाव तक सुक्खू ही पीसीसी अध्यक्ष बने रहेंगे।

शिंदे की बातों को वीरभद्र समर्थकों ने भी पूरा सम्मान दिया है और अब किसी भी तरह की फिलहाल बयानबाजी नहीं दिखाई दी है। लेकिन, असल परीक्षा अब चुनाव में देखने को मिलेगी।

हालांकि, वर्तमान सीज़फायर को बीजेपी एक अच्छे अवसर के तौर पर देख रही है। उसे लग रहा है कि भले ही संगठन और सरकार में सुलह हो गई है, लेकिन इनके कार्यकर्ताओं के भीतर की खटास बाकी है। जिसका लाभ चुनाव में आसानी से उठाया जा सकता है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की मौजूदा रोग की सर्जरी नहीं हो पाई है। रोग जस का तस है। सतह पर भले ही कोई कलह दिखाई ना दे, लेकिन भीतर के ज़ख्म हरे हैं। ख़्याल रहे कि राजनीति में गलबहियां भले ही अवसर के आगे नतमस्तक हो जाएं। मगर, जैसे ही स्वयंभू बनने का मौका मिलता है हालात अपने पुराने रूप को धारण कर लेता है। इसका स्पष्ट उदाहरण बिहार में नीतीश कुमार की जेडीयू का लालू के आरजेडी से अलग होना है।

दरअसल, इसके पीछे भी एक किसम का राजनीतिक मनोविज्ञान होता है। राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखने वाला हर शख्स अपने आप को श्रेष्ठ बनाए रखना चाहता है और इसके लिए वह हर राजनीतिक जोड़-तोड़ करता रहता है। इस बात को महान राजनीतिक दर्शनशास्त्री प्लेटो के कथन से समझा जा सकता है, प्लेटो कहते हैं- ''राजनीति में भाग ना लेने का दंड यह है की आपको अपने से निम्न लोगों द्वारा शासित होना पड़ता है।'' और मझा हुआ राजनीतिज्ञ किसी भी सूरत में शासित नहीं होना चाहता।

कुल मिलाकर 'पावर' की जंग में दुनिया भर में लोकप्रिय टीवी सीरियल 'गेम ऑफ थ्रोंस' की यह लाइन बड़ी ही सटिक बैठती है-

 'When you play the game of thrones, you win or you die.' लिहाजा, हिमाचल कांग्रेस में असल जंग चुनाव बाद ही देखने को मिल सकती है। जहां पर सिर्फ जीतने वाला ही रहेगा। हारने वाले का द एंड…तय है।