<p>लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। पार्टीयां और उम्मीदवार एक दूसरे को मात देने के लिये रोज ही नये नये अस्त्र-शस्त्र निकाल रहे हैं। लेकिन देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कई राज्यों में अभी भी असमंजस की हालत में है। हिमाचल प्रदेश की बात करें तो यहां कांग्रेस के लिये जो स्थिति बनी थी, उसे खुद ही पार्टी गंवाती दिख रही है। कुछ सप्ताह पहले तक हालात ऐसे थे मानो कांग्रेस हिमाचल में बड़ी जीत दर्ज कर सकती है। लेकिन वर्तमान हालात में तस्वीर बिलकुल बदल चुकी है ।</p>
<p>हिमाचल प्रदेश में लोकसभा की चार सीट हैं। अभी तक एक भी ऐसी सीट नहीं है, जहां कांग्रेस उम्मदीवार को लेकर तस्वीर साफ हुई है। कांग्रेस के बड़े नेता चुनाव लड़ना नहीं चाह रहे है । इस वक्त हिमाचल प्रदेश की दो संसदीय सीट पर सबसे ज्यादा लोगों की नजर है, हमीरपुर और मंडी। हमीरपुर से पार्टी के कई बड़े नाम ताल्लुक रखते हैं। CLP मुकेश अग्निहोत्री हो या पूर्व PCC चीफ सुखवींद्र सिंह सुक्खू। लेकिन दोनों ही वरिष्ठ नेता चुनाव लड़ना नहीं चाहते। हमारे सूत्र बताते है कि कांग्रेस हमीरपुर से कमजोर प्रत्याशी उतारने जा रही है। ऐसे में एक सवाल लोगों के जहन में उठ रहा है कि क्या हमीरपुर में लड़ाई फिक्स है औऱ यहां "फ्रैंडली फाइट" होने जा रही है। हालांकि इस मामले में हमने इन दोनों नेताओं का पक्ष जानने की कोशिश की, लेकिन दोनों से ही संपर्क हो नहीं पाया ।</p>
<p>मंडी संसदीय सीट से पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का नाम अब सामने आ रहा है। जिसका जिक्र खुद उन्होंने सोशल मीडिया के जरिये किया है और कहा है कि पार्टी जो जिम्मेदारी देगी इसे पूरा करुंगा। यहां इस बात का जिक्र करना जरुरी है कि कुछ दिनों पहले तक हर कार्यक्रम, सभा में पूर्व मुख्यमंत्री ये कह रहे थे कि न मैं और न ही मेरे परिवार से कोई चुनाव लड़ेगा। आखिर ये परिवर्तन आया कैसे ? जानकारों का ये मानना है कि पूर्व मुख्यमंत्री का ये एक राजनीतिक दांव है। सुखराम परिवार की राजनीति को आगे बढ़ाने के लिये उनके पोते आश्रय शर्मा BJP में लगातार टिकट की मांग कर रहे है । ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री सुखराम परिवार को फिर से स्थापित होने नहीं देना चाहते और खुद ही चुनावी मैदान में कूदने को तैयार हो गये।</p>
<p>राजधानी शिमला संसदीय सीट पर कांग्रेस पार्टी 80 वर्षीय धनीराम शांडिल पर दांव लगाने का मन बना चुकी है । कांग्रेस के इस फैसले का दबी जुबान से विरोध भी शुरु हो चुका है । पार्टी के युवा इस फैसले के साथ खड़े नजर नहीं आ रहे है ।</p>
<p>कांगड़ा संसदीय सीट में भी पार्टी को जिताऊ उम्मीदवार नहीं मिल रहे । पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री जीएस बाली पहले ही चुनाव लड़ने से इंकार कर चुके हैं । कहा जा रहा है कि जीएस बाली जिन मुद्दों को लेकर लगातार लड़ाई लड़ते आ रहे थे । पार्टी उन मुद्दों को भुनाने में नाकाम रही । चाहे बेरोजगारी का मुद्दा हो या बेरोजगार युवाओं को दिया जाने वाला बेरोजगारी भत्ता को बंद किये जाने की लड़ाई हो । पार्टी किसी भी मुद्दे को लेकर फ्रंटफुट में नहीं आयी और सरकार के खिलाफ कोई निर्णायक लड़ाई नहीं लड़ पायी । ऐसे में जीएस बाली हताश और निराश बताये जा रहे हैं ।</p>
<p>इन तमाम परिस्थितयों को देखते हुए कहा जा सकता है कि कांग्रेस पार्टी ने अच्छे मौके को गंवा दिया है और इसका असर कांग्रेस पार्टी को चुनाव परिणाम में देखने को भी मिलेगा ।</p>
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