Follow Us:

सर्किट हाउस से सरकार को हो रहा करोड़ों का घाटा, बढ़ाया गया किराया

नवनीत बत्ता |

हिमाचल प्रदेश की आर्थिक स्थिति कुछ ख़ास नहीं चल रही और जो भी सरकारें आती है वे करोड़ों के लोन के जरिये अपना काम चलाती हैं। ऐसे में प्रदेश आर्थिक कर्ज में डूबता रहता है सरकारें बदलने पर इसे राजनीतिक मुद्दा बनाया जाता है। कोई भी सरकार खर्च कम करने या राजस्व उत्पन्न करने पर ज्यादा ग़ौर नहीं करती। ऐसे में सरकार के बनाए सर्किट हाउस भी घाटे का एक मुख्य कारण है। हर साल सर्किट हाउस में सरकार का लगभग 56 करोड़ खर्च होता है, जबकि इसकी कमाई केवल 1 करोड़ है।

अब जब इसकी मूल स्थिति पूरी तरह बिगड़ चुकी है तो सरकार के पास इसका किराया बढ़ाने के अलावा कोई साधन नहीं है। ऐसे में सर्किट हाउस का किराया 50 से 300 रुपये कर दिया गया है। लिहाज़ा 90 कमरों का जो नया सर्किट हाउस बनाया है उसमें भी अफ़सरशाही सरकारी रेट पर ही देने की बात कर रही थी लेकिन GAD के हस्तक्षेप के बाद यहां रेट बढ़ाकर 500 रुपये किया गया।

हैरानी इस बात की भी है कि प्रदेश के सभी नेताओं के घर के पास इस तरह के परिधि गृह बना दिए गए हैं। इनका जब तक नेता चुनाव जीतता रहता है तब तक तो उनका उपयोग होता है लेकिन उसके बाद वह सिर्फ एक तरह से सरकार के लिए बेकार ही साबित होते हैं। ऐसे में इन प्रतिक्रिया को बनाने का कोई नियम भी सरकार को रखना चाहिए ताकि इस तरह के घाटे में चल रही सरकार को और अधिक घाटा सहना न पड़े। यहां तक कि नेता और मंत्री अपने चेहतों को ही यहां ठहरने की सुविधा देते हैं। आम जनता को न तो सर्किट हाउस में बुकिंग मिलती है और न ही यहां ठहरने का मौका।

सब्सिडी छोड़ी तो सस्ता किराया क्यों…??

वहीं, नेताओं और अधिकारियों की बात करें तो इन्होंने सदन में सस्ता ख़ाना लेने उर्फ सिब्सिडी लेने की बात से मना कर दिया है। लेकिन ऐसे सर्किट हाउस पर सरकार मार्केट से कम किराया क्यों कर रही है। सरकारी गृहों के हिसाब से यहां अधिकारियों और नेताओं को छूट क्यों दी जाती है…??