Follow Us:

BJP के राजनीतिक खेल में फंसी सेंट्रल यूनिवर्सिटी, PM ने नहीं किया कोई ज़िक्र

मनीष कौल |

जन आभार रैली के दौरान सभी युवाओं और बीजेपी के छात्र इकाई की नज़र प्रधानमंत्री मोदी पर टिकी थी। सभी युवा टकटकी लगाये मोदी को देख रहे थे और सुन रहे थे कि मंच से मोदी कब सेंट्रल यूनिवर्सिटी पर बोलते हैं … कोई वादा, कोई भरोसा, या कोई आश्वासन। लेकिन, प्रधानमंत्री के आधे घंटे से ज्यादा के भाषण में प्रदेश सरकार की उपलब्धियां तो नज़र आईं, लेकिन सेंट्रल यूनिवर्सिटी की इसमें कोई बात नहीं हुई और न कोई ज़िक्र आया।

इस तरह से ये भी कहा जा सकता है कि सेंट्रल यूनिवर्सिटी का मुद्दा बीजेपी के अपने गुटों में ही राजनीतिक फुटबॉल बन गया है। पहले जहां पूर्व कांग्रेस सरकार और बीजेपी में इसके होड़ की जंग को लेकर कैंपस डिसाइड नहीं हो पाता था, वहीं अब सरकार ने कैंपस तो बेशक डिसाइड कर दिया है। लेकिन इसके शिलान्यास के लिए बीजेपी नेताओं की नूरा कुश्ती लगातार जारी है।

माना तो ये भी जा रहा है कि जयराम सरकार ने पार्टी में मची श्रेय लेने की होड़ को देखते हुए इस बार शिलान्यास के कार्यक्रम को टाला है। हालांकि, इसपर मुख्यमंत्री ने सफाई देते हुए कहा था कि अभी शिलान्यास में कुछ पेंच आ रहा है। लेकिन, ये पेंच क्या है, कब तक इसे दूर कर लिया जायेगा… ये साफ नहीं किया गया…।।

BJP नेता दे चुके हैं बयान

सेंट्रल यूनिवर्सिटी के शिलान्यास पर बीजेपी के कई नेता बयानबाजी भी कर चुके हैं। सबसे पहले बीजेपी के वरिष्ठ नेता शांता कुमार ने बयान जारी किया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि सरकार को इस संदर्भ में लेटर लिखा गया है कि सेंट्रल यूनिवर्सिटी का शिलान्यास सरकार के जश्न पर पीएम से करवाया जाए। उसके बाद हमीरपुर से सांसद अनुराग ठाकुर ने सेंट्रल यूनिवर्सिटी का श्रेय की होड़ में बयानबाजी की, जो मीडिया की सुर्खियों पर रही।

यही नहीं, विपक्ष में बैठे कांग्रेस ने भी इस पर खूब राजनीतिक रोटियां सेकीं और सरकार पर एक के बाद एक कई सवाल दागे। इन सबके बाद मुख्यमंत्री ने इस शिलान्यास की बात को पेंच बताकर ख़ारिज कर दिया।

मंडी के कैंपस के साथ मिली थी CU

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, क़रीब 10 साल पहले मिली इस यूनिवर्सिटी और मंडी में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी IIT हिमाचल प्रदेश लगभग एक साथ शुरू हुए थे। मंडी के छात्र देश-विदेश में नाम कर रहे हैं। इसरो और डीआरडीओ के प्रोजेक्ट ले रहे हैं। लेकिन, केंद्रीय विश्वविद्यालय इसी गणित में उलझा हुआ है कि कैंपस कहां बनाएं।

2009 में केंद्र की यूपीए सरकार ने इसे दिया था, जबकि प्रदेश में उस समय मौजूद धूमल सरकार ने इसमें देरी की। उसके बाद 2012 में सत्ता में आई कांग्रेस ने इसके कैंपस धर्मशाला बनाने पर पूरा जोर दिया और दोनों ही पार्टियों के बीच 5 साल जंग होती रही।

चुनावों के समय आती है याद

केंद्रीय विश्वविद्यालय की बात आती है तो सिर्फ चुनावों के मौके पर। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में ही शाहपुर, धर्मशाला और देहरा में बंट चुके केंद्रीय विश्वविद्यालय के नसीब में करीब एक दशक बाद भी अपना भवन नहीं आया है। धौलाधार के पहाड़ गवाह हैं कि कैसे एक राष्ट्रीय संस्थान उधार के भवन में दिन गुजार रहा है। कैसे यहां के छात्र अपने डिग्री उधार के संस्थानों और कम फैसिलिटीस़ के बीच पूरी कर रहे हैं।

ख़ैर जो भी लेकिन सरकारों को युवाओं के भविष्य़ के बारे में तो सोचना चाहिए। अब देखना ये होगा कि शिलान्यास न होने से प्रदेश बीजेपी के छात्र इकाई से जुड़ा संघ क्या कदम उठाता है। क्योंकि छात्र संघ पहले ही सरकार को चेतावनी दे चुका था।