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करप्शन के ख़िलाफ सीरियस नहीं जयराम सरकार!, 1 साल में नहीं हुई लोकायुक्त की नियुक्ति

नवनीत बत्ता |

विधानसभा चुनावों में बीजेपी द्वारा किये गए वादे जुमले साबित हो रहे हैं। सरकार को सत्ता में आए साल का वक़्त हो चुका है और अभी तक प्रदेश में लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हुई। जबकि चुनावों के समय बीजेपी ने लोकायुक्त की नियुक्ति की बात कही थी और इसे अपने विज़न डॉक्यूमेंट में भी शामिल किया था।

क्या है लोकायुक्त…??

लोकायुक्त एक ऐसा विभाग होता है जो प्रदेश में होने वाले भ्रष्टाचार पर पैनी नजर रखता है और जांच में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लेकिन 1 साल बीतने के बाद भी बीजेपी सरकार को इस नियुक्ति की जरूरत अभी नहीं पड़ी है। हालांकि, लोकायुक्त न होने के कारण लोकायुक्त विभाग में 35 कर्मचारी भी काम करते हैं, जिन्हें हर माह सैलरी जाती है और उनपर सालाना क़रीब 2 करोड़ से ज्यादा का खर्च आता है।

यहां आपको बता दें कि पिछली सरकार के दौरान भी लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं की गई और 1983 से लेकर 2012 के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि प्रदेश में लोकायुक्त की नियुक्ति ही नहीं हो पाई है। 1983 में जस्टिस टाटा चेरी हिमाचल के पहले लोकायुक्त बने थे और 2012 में लोकेश्वर सिंह पांडा को लोकायुक्त बनाया गया था। लेकिन उसके बाद आज दिन तक लोकायुक्त को लेकर कोई भी नियुक्ति प्रदेश में नहीं हुई थी। सत्ता पाने के लिए बीजेपी ने इस पद पर नियुक्ति की बात कही, जो अभी तक जुमला साबित हो रही है।

वहीं इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह प्रधानमंत्री के अधिकार क्षेत्र का मामला है और इस पर मैं कुछ नहीं कह सकता। वहीं इस बारे में प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता नरेश चौहान का कहना है कि मुख्यमंत्री कई बार दिल्ली जाकर लौट आए। लेकिन हम नहीं समझते कि उन्होंने भ्रष्टाचार को रोकने के लिए होने वाली लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर कोई प्रयास प्रधानमंत्री के समक्ष किए होंगे। यही कारण है कि 1 साल बाद भी बीजेपी सरकार इस नियुक्ति को नहीं कर पाई।