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सेनेटाइजर घोटाले में सत्ता के करीबियों, सचिवालय के अफसरों और कर्मियों का मेल – वैश्विक महामारी में भी लूट का बड़ा खेल

पी. चंद |

सचिवालय की गलियों में हर दिन चक्कर काटना, नेताओं के क़रीब रहना, बड़ी बड़ी गाड़ियों में आना, बड़ी विनम्रता से हालचाल पूछना, अभी एक पार्टी कभी दूसरी पार्टी का दामन थाम लेना हम भी हर रोज़ देखते है कि ऐसे लोग सचिवालय में आते क्यों हैं। एक सरकार आई तो उसके हो गए दूसरी आई तो उसके हो लिए । सचिवालय के बाबुओं से लेकर अफसरों तक से संबंध, लगता तो था दाल में कुछ तो काला है। लेकिन ताज़ा सेनेटाइजर घोटाले ने धुँधली तस्वीर साफ कर दी। सत्ता और सचिवालय के बीच किस तरह कड़ी बनकर घोटाले किए जाते है ये भी समझ आ गया। कुछ नेता तो कुछ चमचे बनकर दलाली करते है तो कुछ पत्रकारिता जैसी ज़िम्मेदारी के मिशन को "मिशन दलाली" बना बैठें हैं।

लिखता हूं तो ये सत्ता के घोटालेबाज़ नाराज़ होते है न लिखूं तो कलम दुःखती है। इस आपत्ति काल में भी ये दलाल सेनेटाइजर तक पर दलाली कर रहे है तो फ़िर भला आपके हित की बात कौन करेगा।
सचिवालय को सैनिटाइजर मुहैया करवाने का तानाबाना बड़ी होशियारी से बुना गया। पहले चरण में कम क़ीमत और दूसरे में सेनेटाइजर के दाम बढ़ा दिए गए। 50 रुपए का सेनेटाइजर 130 रुपए में बेचा गया। इसमें ठेकेदार से ज़्यादा सचिवालय में बैठे लोग ज़्यादा दोषी है जिन्होंने सब कुछ जानते हुए भी महंगे दामों पर सेनेटाइजर लिए। सेनेटाइजर घोटले के साथ पीपीई किट ख़रीद पर भी सवाल उठ रहे हैं। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने मामले की गंभीरता को समझते हुए मामले की विजिलेंस जांच के आदेश दे दिए थे।

सतर्कता विभाग ने ठेकेदार और आपूर्तिकर्ता मेसर्स ललित कुमार पर धोखाधड़ी और जालसाजी का मामला दर्ज किया है। ठेकेदार पर आरोप है की रेट को टेम्पर किया गया। अब जांच के घेरे में सचिवालय कर्मी, अफ़सर और बाबु सहित नेता भी है। अब देखना यही है कि जांच की आंच किस किस के गिरेबान तक पहुँचती हैं। क्योंकि आजतक कई जांच अधर में है जो अपने अंत तक नही पंहुँच पाई। फ़िलहाल विजिलेंस प्रमुख अनुराग गर्ग ने बताया कि मामले में अभी जांच चल रही है जब कोई प्रगति होगी तब जानकारी दे दी जाएगी।