हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अपने कार्यकाल का आखिरी बजट पेश कर दिया है. जिसके बाद से हिमाचल की बीजेपी सरकार पर ताबड़तोड़ हमले शुरू हो गए हैं. नेता प्रतिपक्ष ने तो जयराम ठाकुर को हिमाचल के इतिहास का सबसे महंगा मुख्यमंत्री करार दे दिया. हालांकि मुकेश अग्निहोत्री ने कांग्रेस कार्यकाल के कर्जों का भी जिक्र किया और सीधे सरकार पर बढ़ रहे सबसे ज्यादा कर्ज को लेकर मुख्यमंत्री को चौतरफा घेरा.
नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जयराम ठाकुर को हिमाचल के इतिहास में सबसे महंगे मुख्यमंत्री बताया है. उन्होंने कहा सरकार गलत आंकड़ों के ज़रिए भ्रम फैलने की कोशिश कर रही है. अग्निहोत्री के मुताबिक 21 फरवरी 2022 तक बजट में 63,200 करोड़ के कर्ज के बोझ होने की संभवना जताई गई है. जबकि सरकार ने 6276 करोड़ के ऋण लेने की इसी महीने तैयारी कर रखी है, जो महीने के आखिर तक 70 हज़ार करोड़ हो जाएगा.
नेता प्रतिपक्ष की बातों में कितना दम है हम एक बार आंकड़ों के जरिए समझते हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है कि हिमाचल प्रदेश सरकार कर्ज की बैसाखियों के सहारे चली हुई है. राज्य पर कर्ज बढ़कर 63200 करोड़ रुपए हो गया है, जबकि 6276 करोड़ कर्ज के लिए अप्लाई किया गया है. 1992 तक शांता कुमार के मुख्यमंत्री रहने तक प्रदेश में कोई कर्ज का बोझ नहीं था लेकिन बाद की सरकारों ने प्रदेश को जो कर्ज में डुबोना शुरू किया उससे प्रदेश आज तक नहीं उभर पाया.
हिमाचल की नाजुक आर्थिक स्थिति की पृष्ठभूमि पर नजर डालें तो वर्ष 2012 में जब प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली सरकार ने सत्ता छोड़ी थी तो हिमाचल प्रदेश पर 28,760 करोड़ रुपए का कर्ज था. उसके बाद वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के समय यह कर्ज बढ़कर 47,906 करोड़ रुपए हो गया.
यानी करीब 20 हजार करोड़ का कर्ज प्रदेश को चलाने के लिए वीरभद्र सिंह की कांग्रेस पार्टी को लेना पड़ा. मौजूदा जयराम सरकार भी करीब 63200 करोड़ का कर्ज ले चुकी है. हो सकता है कि जाते जाते जयराम सरकार कर्ज में वीरभद्र सिंह सरकार को भी पीछे छोड़ दे. यही कारण है कि 2019-20 में कुल राजकोषीय देनदारी-सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) अनुपात का 37.60 प्रतिशत हो गई थी अब ये उससे भी ज्यादा बढ़ गई है.