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नादौन विधानसभा: कहीं फिर से सागर हाथ से ना छूट जाए

समाचार फर्स्ट डेस्क |

हिमाचल प्रदेश में हमीरपुर जिला बीजेपी का गढ़ माना जाता रहा है। लेकिन, समय-समय पर कुछ कांग्रेस कद्दावरों ने बाजी पलट भी दी है। लेकिन, ऐसे में जब पूरे हिमाचल में कांग्रेस कमजोर नज़र आ रही है और बीजेपी की माहौल बना हुआ है एक बार फिर हमीरपुर जिले में कई कांग्रेसी नेताओं की राजनीतिक साख दांव पर लगी है। 

इस कड़ी में हम अगर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू की बात करें तो उनका विधानसभा क्षेत्र नादौन एक बार फिर उनके हाथ से फिसलता हुआ जान पड़ रहा है। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि नादौन से सुक्खू चुनाव लड़ेंगे या उनकी पत्नी कमलेश दो-दो हाथ करेंगी। 

लेकिन, 4 सालों से लगातार संगठन का काम देख रहे सुखविंदर सिंह सुक्खू का इलाके के लोगों से ताल्लुक कम रहा है। ऐसे में क्षेत्र के लोगों के बीच उनकी ग्रैविटी कम जान पड़ती है। हमीरपुर जिले की राजनीति पर नज़र रखने वाले राजनीतिक पंडितों की मानें तो नादौन विधानसभा चुनाव कई सारे फैक्टर्स पर निर्भर करता है। इसमें सबसे बड़ा फैक्टर तो मोदी-लहर ही है। इसके बाद हमीरपुर-धूमल कमेस्ट्री और आखिर में लोकल राजनीति पर काफी कुछ टिका हुआ है।

स्थानीय नेताओं पूर्व विधायक एवं वर्तमान पीसीसी अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू की पत्नी कमलेश, बीजेपी से विधायक विजय अग्निहोत्री, पंडित लेखराज शर्मा, कांग्रेस में वीरभद्र खेमे के अहम सिपहसालार ब्रिज मोहन सोनी और जातीय समीकरणों में अहम भूमिका निभाने वाले उद्योगपति प्रभात चौधरी सरीखे ऐसे चेहरे हैं जो पिछले चुनावों में भी महत्वपूर्ण थे और इस बार भी निर्णायक भूमिक में रहने की हैसियत रखते हैं।

बीजेपी से विजय अग्निहोत्री की बात करें तो वे नादौन के विधायक तो रहे लेकिन, उनकी पहचान एक धीमी गति से काम करने वाले नेताओं के रूप में मिली। हालांकि, अग्निहोत्री लगातार जनसंपर्क अभियान से जुड़े रहे और गांव-गांव जाकर अपनी मौजूदगी दर्ज कराते रहे। लेकिन यह भी गौर करने वाली बात है कि उन्हीं के कार्यकाल में पंडित लेखराज जो बीजेपी से हैं उन्होंने भी एक समाजसेवी के रूप में अपनी पहचान बनाई और बीजेपी का एक बड़ा धड़ा इके साथ भी खड़ा है। लिहाजा, पंडित लेखराज की भूमिका भी चुनाव में मायने रखेगी।

नादौन में सबसे महत्वपूर्ण हैं सुखविंदर सिंह सुक्खू।  इनके नाम की चर्चा तो है लेकिन जितनी मुंह उतनी अलग बातें भी सुनने को मिल जाएंगी। स्वर्गीय नारायण चंद पराशर के बाद सुक्खू को यहां से टिकट मिला और वे लगातार 2 बार चुनाव जीते। तीसरा चुनाव वह भारी मतों के अंतर से हार गए।

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते यह साफ नहीं है कि वो विधानसभा चुनाव में ताल ठोकेंगे या उनकी पत्नी कमलेश मैदान में दिखेंगी। कमलेश का नाम  इसलिए चर्चा में है क्योंकि पिछले 6 महीनों से लगातार वह इलाके में घूम रही हैं और काग्रेस के कार्यकर्ताओं से संपर्क बनाए हुए हैं। गौरतलब है कि खुद जब सुक्खू  इलाके में होते हैं तो महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में कमलेश उनके साथ अक्सर दिखाई देती हैं।

लेकिन, इन सबके अलावा सुखविंदर सिंह सुक्खू को राहत सिर्फ जीत ही दिला सकती है और लोहे के चने चबाने जैसा है। क्योंकि, उन्हीं की सरकार ने उन्हें अपने क्षेत्र में जवाब देने लायक नहीं छोड़ा है। नादौन में स्पाइस पार्क कैंसिल हो चुका है। मेडिकल कॉलेज को लेकर बीजेपी ज्यादा पॉजेसिव है और उसे हमीरपुर विधानसभा में खुलवाने के लिए फिल्डिंग लगाए हुए है। इसके अलावा धौलासिद्ध परियोजना भी अधर में ही लटकी नज़र आ रही है। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष की सरकार होने के बावजूद काम नहीं होने पर जनता तो सवाल पूछेगी ही।

इसके अलावा जातीय समीकरण की बात करें तो यहां पर प्रभात चौधरी और भारत चौधरी महत्वपूर्ण हैं। मगर, इनका रोल इस बात पर डिपेंड करेगा कि इनके वोट बंटते हैं या एकतरफा पड़ते हैं।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि अगर सिर्फ कांग्रेस और बीजेपी के दो बड़े चेहरों की बात करें तो सुक्खू के पास सिर्फ और सिर्फ अपना ही बाहुबल है, जिसका ज्यादा वक्त अपने ही लोगों से युद्ध में जाया हो रहा है। जबकि, विजय अग्निहोत्री का खुद का संघर्ष भी है और सबसे बड़ी बात इनके साथ मोदी फैक्टर भी साथ है।