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रैली में भीड़ जुटाने के लिए स्कूलों को जारी किए गए फ़रमान, निज़ी स्कूल बस हादसे ने खोली पोल

पी. चंद, शिमला |

धर्मशाला में प्रधानमंत्री की रैली की भीड़ जुटाने के लिए स्कूली बच्चों को भी लाया गया। आंगनवाड़ी वर्कर के साथ स्कूली शिक्षकों को भी भीड़ का हिस्सा बनने के लिए फ़रमान जारी किए गए थे। सबसे हैरानी की बात तो ये है कि निज़ी स्कूलों के बच्चों को भी रैली के लिए उन्ही की निज़ी बसों में बुलाया गया। लंज में हुए स्कूली बस हादसे ने सरकार की रैली की पोल खोल दी।

ऐसी भी क्या भीड़ हुई जो स्कूली बच्चों को एकत्रित कर जुटानी पड़े। ये हादसा सवाल सरकार की कार्यप्रणाली पर उठा रहा है। क्या इस तरफ से झूठी वाहवाही लूटने के लिए बच्चों की ज़िंदगी दांव पर लगाना उचित है। सरकार को अपने साल भर के कार्यों पर भरोसा नही था कि इस तरह से निज़ी व सरकार की संस्थाओं को भीड़ जुटाने के लिए फ़रमान जारी किए गए। निज़ी स्कूलों को ऐसी क्या आफ़त पड़ गई कि उन्हें पीएम की रैली में अपने स्कूल के बच्चों सहित बसें भेजनी पड़ी।

जो लेटर अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है उससे साफ़ नज़र आ रहा है कि सरकार ने किस तरह से बाकायदा फरमान जारी कर भीड़ जुटाने के लिए निज़ी स्कूलों को लेटर जारी किए। विपक्ष के नेता मुकेश अग्निहोत्री ने आरोप लगाए की सरकार ने एक साल में कुछ नहीं किया। सरकार के पास गिनाने के लिए कुछ नहीं था। इसलिए भीड़ जुटाना मुश्किल हो रहा था। यही वजह रही कि सरकार ने इस तरह के फ़रमान सरकारी संस्थानों के साथ निज़ी संस्थानों को भी दिए। जबरन भीड़ जुटाने के बाद भी पीएम प्रदेश के लिए कोई घोषणा करके नहीं गए। जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। अब सरकार की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं।

जो प्रदेश पहले ही 50 हज़ार करोड़ के आर्थिक बोझ के तले दबा हो। जिसको चलाने के लिए लोन के ऊपर लोन लिए जा रहे हों उस प्रदेश में रैलियों के लिए इस तरह की फजूलखर्ची कहां तक जायज़ है। जो बीजेपी चुनावों से पहले फजूलखर्ची का आरोप लगाती रही आज सत्ता मिलने के बाद क्यों बदल गई। हवा में सफ़र करते-करते वायदे व असूल भी क्या हवा हो रहे हैं। क्या विपक्ष में रहते हुए ही देश-प्रदेश हित दिखते हैं उसके बाद स्वयं के हित दिखते हैं?