<p>सोमवार को टांडा मेडिकल कॉलेज की व्यवस्था देख हर किसी की आंखे चौंधियाई हुई थीं। अस्पताल में घूसते ही विरासत में मिलने वाली गंदगी, स्टाफ की बद्जुबानी किसी फाइव-स्टार अस्पताल के मैनर में तब्दील हो गई थी। सब कुछ बदला-बदला सा था। अस्पताल के डॉक्टरों की जुबान किसी मार्केटिंग वाले बंदे/बंदी की तरह मीठी हो चली थीं। हर वॉर्ड में डॉक्टर और नर्सेज मुस्तैद थे। फर्श तो इतना साफ कि फिजिक्स के स्टूडेंट 'रिफ्लेक्शन ऑफ लाइट' का प्रैक्टिकल कर लें। शांति ऐसी मानों किसी एग्जाम सेंटर पर परीक्षा चल रही हो। वार्ड में मरीज कम और खाली बेड 'निरोग हिमाचल' का ख्वाब खुली आंखों से दिखा रहे थे। सब कुछ वाऊ!! कल्चर में तब्दील हो गया था।</p>
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<p>अस्पताल पहुंचे अधिकांश लोग नॉस्टाल्जिक हो गए थे और अतीत को मिस करने लगे। जब 30 घंटे पहले ही अस्पताल में बेतहाशा भीड़, शोर-शराबा, स्टाफ की बद्जुबानी और गंदगी थी। महिला वॉर्ड में एक-एक बिस्तर पर दो-दो महिलाओं को एड्जस्ट किया गया था। लेकिन, इतनी जल्द सब बदल जाने से सभी अवाक् थे।</p>
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<p>अगर आप सोच रहे होंगे कि टांडा मेडिकल कॉलेज का कायाकल्प हो गया है। स्टाफ से लेकर व्यवस्था में प्रोफेशनलिज्म आ गया है, तो यह ख्याल आपके लिए बेमानी है। दरअसल, यह सब मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के आगे अपनी छवि चमकाने के लिए किया गया था। सीएम साहब को सब कुछ 'ए-वन' का दिखे, इसके लिए सोमवार सुबह से तैयारियां चल रही थीं। </p>
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<p><span style=”color:#c0392b”><strong>झूठ के पांव देर तक नहीं टिकते</strong></span></p>
<p>समाचार फर्स्ट की टीम मुख्यमंत्री के आने से पहले ही अस्पताल पहुंच गई थी और पहले ही पूरी व्यवस्था का जायजा ले लिया था। सुबह से ही सफाई का काम चल रहा था। जो मरीज हल्का-फुल्का ठीक हुआ नहीं कि उसे डिस्चार्ज लेटर थमाया जा रहा था। डॉक्टरों से लेकर स्टाफ के काम में ऐसी फुर्ती कि बाजीराव की तलवार पर भी संदेह होने लगे।</p>
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<p>सुबह से चला काम शाम के 4 बजे तक चलता रहा। फर्श की सफाई एक बार नहीं बल्कि किसी शॉपिंग मॉल की तरह बार-बार की जा रही थी। सफाई-कर्मियों की एक्स्ट्रा फौज बुलाई गई थी। हालांकि, यह सारी कवायद हमारे कैमरे में कैद हुई। हमारे पास वो भी पल कैमरे में कैद हैं, जब अस्पताल गंदगी से बेहाल और स्टाफ की तंगहाली से रो रहा था। लेकिन, चूंकि मुख्यमंत्री आ रहे थे। सभ कुछ चकाचक करना था। लिहाजा, इसकी तैयारी फुल-स्पीड पर चल रही थी।</p>
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<p>आप इन फोटोग्राफ से अंदाजा लगा सकते हैं। हर वॉर्ड, हर गैलरी, हर डिपार्टमेंट यहां तक कि वॉशरूम भी चकाचक हो रहा था।</p>
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<p>मुख्यमंत्री पूरे अस्पताल का दौरा करने वाले थे। लिहाजा, सब कुछ टीप-टाप हो गया था। गंदगी एक कोने में जलाई भी जा रही थी।</p>
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<p><strong><span style=”color:#c0392b”>मरीजों-तीमारदारों ने खोली डाली पोल </span></strong></p>
<p>मुख्यमंत्री जब वॉर्ड का निरीक्षण कर रहे थे। तब वहां मौजूद मरीजों को कुछ परिजन उनसे मिलने आ गए और अस्पताल की व्यवस्थाओं की पोल खोल दी। चंबा से आए एक मरीज के परिजन ने प्रदेश में मेडिकल सुविधाओं को लेकर सीएम साहब को ही दस बातें सुना डाली। उसका कहना था कि बिना इलाज के ही चंबा स्थित अस्पताल से उसकी बेटी को टांडा रेफर कर दिया गया। यहां भी उसकी बेटी की देखभाल सही से नहीं हो रही है। उसका कहना था कि वह आर्थिक रूप से कमजोर है और रेफर के नाम पर उसे 20 हजार का आर्थिक भार सहना पड़ा है। </p>
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<p>एक मरीज ने तो मुख्यमंत्री से ही कहा कि जनाब आपको महज दिखाने के लिए ये सारी तैयारियां की गई हैं, वर्ना यहां के हालात तो अक्सर बद से बद्तर रहते हैं। इस दौरान वहां मौजूद अस्पताल का प्रबंधन कुछ बोल भी नहीं पा रहा था। अस्पताल पहुंची पत्रकार बिरादरी ने भी मुख्यमंत्री के दौरे के मद्देनजर इस बदलाव को लेकर सवाल उठाए।</p>
<p>लेकिन, सवाल है कि आखिर मुख्यमंत्री से ये अस्पताल की चुनौतियों को क्यों छुपाया जा रहा है? क्यों नही मुख्यमंत्री उस सच्चाई से रूबरू हुए जो आए दिन मरीज झेलते हैं? क्यों उन लोगों को आनन-फानन में डिस्चार्ज किया गया, जो पूरी तरह रोगमुक्त हुए भी नहीं थे?</p>
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