समझिए कौल सिंह की सक्रियता के पीछे क्या है वजह?

<p>जून महीने की गर्म हवाओं ने कांग्रेस में बैचेनी बढ़ा दी है। सत्ता खोने के अढ़ाई साल बाद यकायक मंडी से कांग्रेस या फिर यूं कहें कि कुछ वरिष्ठ नेताओं ने जिस तरह से सक्रियता बढ़ाई है वही इस बैचेनी का बड़ा कारण है । आठ बार विधायक, कई बार मंत्री ओर दो बार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे ठाकुर कौल सिंह ने इसकी शुरूआत करके कोरोना काल में भी कांग्रेस में उफान ला दिया है । जून के पहले सप्ताह उन्होंने मंडी में प्रैस वार्ता करके सरकार पर हमला बोला तो दूसरे सप्ताह शिमला जाकर कई विधायकों और पूर्व विधायकों के साथ अपने आवास पर लंच करके माहौल को और गर्मा दिया।</p>

<p>बात यहीं तक सीमित नहीं रही हमीरपुर में शहीद अंकुश को श्रद्धांजलि देने पहुंचे कौल सिंह ने बातों ही बातों में प्रदेशाध्यक्ष कुलदीप राठौर के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया। अब दो दिन पहले उनके समर्थकों जिनमें कई पूर्व विधायक और पिछला चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशी भी रहे हैं ने एक चिट्ठी जिसे पत्र बम की संज्ञा भी दी जा रही है, हाइकमान को लिख डाली। अब इस सब को लेकर कांग्रेस में हडक़ंप मचा हुआ है। सवाल यह खड़ा है कि कौल सिंह ठाकुर जिन्होंने पिछला चुनाव अपना आखिरी चुनाव कह कर लड़ा था और एक बार अध्यक्ष रहते हुए यहां तक ब्यान दे दिया था कि 75 साल की आयु से अधिक वाले नेताओं को रिटायरमेंट ले लेनी चाहिए, यह सब अपने स्तर पर कर रहे हैं कि इसके पीछे कोई कांग्रेस का बड़ा नेता है।</p>

<p>अपने को चुनावी राजनीति से सन्यास लेने का एलान कर चुके ठाकुर कौल सिंह का नाम भी पहले प्रदेशाध्यक्ष के लिए चला था। क्योंकि प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर मंडी जिले से हैं और मंडी जिले में कांग्रेस का स्कोर भी पिछले चुनावों में जीरो रहा था ऐसे में उन्हें लाकर जिले में चुनावों में मूर्छित होकर पड़ी कांग्रेस को संजीवनी देने की बातें हो रही थी लेकिन कुलदीप राठौर को प्रदेशाध्यक्ष बना दिया। कौल सिंह की सक्रियता तो यहां तक संकेत दे रही है कि प्रदेश के कुछ नेताओं ने उन्हें सत्ता में आने की सूरत में एक मौका (सीएम) का देना मान लिया है ताकि आगे से उनके रास्ते खुल सकें। यह सब एक रणनीति के तहत चल रहा है ताकि वीरभद्र सिंह की सक्रियता कम होने की स्थिति में उनका उत्तराधिकारी इस गुट से बन सके।</p>

<p>बता दें कि प्रदेश से ही संबंधित ऐसे नेता जो दिल्ली में अच्छी पैठ रखते हैं और प्रदेश की राजनीति में पूरी दिलचस्पी उनकी बनी हुई है। उन्होंने ही यह अभियान चलाया है ताकि वीरभद्र धड़े को दरकिनार किया जा सके। इसके लिए प्रदेश में साफ तौर पर कांग्रेस में दो बड़े गुट उभर कर सामने आने लगे हैं, लंच और पत्र बम भी इसके गवाह बन रहे हैं। अब जब हाइकमान के बीच से ही इशारा हो चुका है तो जाहिर है कि इस अभियान को तेजी तो मिलेगी ही। यही कारण है कि कांग्रेस में अब मुख्यमंत्री के जिले से किसी बड़े नेता को पार्टी की कमान सौंपने की एक बड़ी कवायद शुरू हो चुकी है जिसके संकेत लंच और पत्र बम से साफ मिलने लगे हैं।</p>

<p>केंद्र में इस बात की जोर शोर से पैरवी हो रही है कि यदि कांग्रेस को आने वाले दिनों में प्रदेश में वापसी करनी है तो शून्य पर खड़े मंडी जैसे बड़े ओर राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण जिले को तवज्जो दी जाए। यही तवज्जो को लेकर जून के महीने में चल रही गर्म हवाओं ने कांग्रेस में बैचेनी पैदा कर दी है जो शायद बरसात में झमाझम बारिश के साथ तुफान लाएगी।</p>

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