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माता का एक शक्ति पीठ जहां मुसलमान भी झुकाते हैं सिर

सतीश धर (स्तंभकार) |

माता के मंदिर में मुसलमान सिर झुकाते हैं। पड़ गए ना अचरज में, लेकिन ये सच है। पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में कराची से 328 किलो मीटर दूर हिंगलाज माता का एक मंदिर है जहां हिन्दुओं के साथ-साथ मुसलमान भी माता को पूजते हैं l कराची से करीब 4 घंटे की दूरी पर ये मंदिर स्थित हैl हिन्दुओं के 51 शक्ति पीठों में से एक हिंगलाज माता के यहां अप्रैल मास के नवरात्रों के दौरान काफी प्रसिद्ध मेला लगता है l यहां गुफा में माता की पिंडी है, जिसे सिन्दूर से सजाया गया हैl

पाकिस्तान में भी गिरे थे सती के अंग

मुसलमान हिंगलाज को नानी और यहां की यात्रा को नानी का हज कहते हैंl हिन्दू इस मंदिर में तीन नारियल चढ़ाते हैं और मुसलमान “शिरनियों” का प्रसाद चढ़ाते हैं l इस मंदिर में पूजानंद्पंथी अखाड़े के छड़ीदारों द्वारा की जाती हैl भारत में हिंगलाज माता के पूजक गुजरात और राजस्थान में सर्वाधिक हैंl अन्य शक्ति पीठों की भांति इस मन्दिर के साथ भी सती के अंगों के गिरने की कथा जुड़ी है l

सती का शव लेकर शिव पृथ्वी पर विचरण करते हुए तांडव नृत्य कर रहे थे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर और देवों के अनुनय-विनय पर भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड कर धरती पर गिराते गए। जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते।

हिंगलाज में गिरा था ब्रह्मरंध

हिंगलाज में सती का ब्रह्मरंध गिरा थाl पुराणों में हिंगलाज पीठ की अतिशय महिमा है। श्रीमद भागवतवत के अनुसार यह हिंगुला देवी का प्रिय महास्थान है- ‘हिंगुलाया महास्थानम्’। ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि हिंगुला देवी के दर्शन से पुनर्जन्मकष्ट नहीं भोगना पड़ता है। बृहन्नील तंत्रानुसार यहां सतीका “ब्रह्मरंध्र” गिरा था। यहां पर शक्ति ‘हिंगुला’ तथा शिव ‘भीमलोचन’ हैं- ‘ब्रह्मरंध्रं हिंगुलायां भैरवो भीमलोचनः। कोट्टरी सा महामाया त्रिगुणा या दिगम्बरी॥

‘हिंगुला’ का अर्थ है सिन्दूर

देवी के शक्तिपीठों में कामख्या, कांची, त्रिपुर, हिंगुला प्रमुख शक्तिपीठ हैं। ‘हिंगुला’ का अर्थ सिन्दूर है। हिंगलाज खत्री समाज की कुल देवी हैं। कहते हैं, जब 21 बार क्षत्रियों का संहार कर परशुराम आए, तब बचे राजा गण माता हिंगुला की शरण में गए और अपनी रक्षा की याचना की। तब मां ने उन्हें ‘ब्रह्मक्षत्रिय’ कहकर अभयदान दिया था।

(लेखक जाने माने साहित्यकार हैं, पत्रिकाओं के लिए लिखते हैं।)