<p>जिला कुल्लू के पलदी घाटी में करथा उत्सव की धूम रही। इस करथा उत्सव में देव परंपरा की अनूठी मिसाल देखने को मिली। मकर संक्रांति के दिन करथा नाग के मंदिर कांडी, बासुकी नाग के मंदिर थाटीबीड़ में करथा उत्सव देखने के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा। प्रदेशभर से आए लगभग हजारों श्रद्धालुओं ने करथा नाग और बासुकी नाग के हारियानों ने इन राक्षस रूपी मंडियालों के साथ देव नृत्य करन के बाद शाम को बीठ को पाने के लिए हजारों युवाओं ने हाथ फैलाए।</p>
<p>परंपरा के अनुसार पलदी करथा उत्सव में जहां देव परंपरा का निर्वाह हुआ वहीं बासुकी नाग ने बीठ देवता के रूप में हजारों श्रद्धालुओं को दर्शन दिए।</p>
<p>मान्यता यह है कि करथा उत्सव की शाम को नर्गिस के फूल का एक गुलदस्ता एक विशेष व्यक्ति द्वारा एक टोकरी में रखकर सिर पर नचाया जाता है। नाचते-नाचते यह गुलदस्ता एक ओर को फैंका जाता है और जिस व्यक्ति के हाथ में यह गुलदस्ता आता है उसे देवता मनवांछित फल देते हैं। उस पर देवता की कृपा बनी रहती है।</p>
<p>मान्यता यह है कि महाभारत और रामायण काल में हुए राक्षस वध के लिए पलदी करथा का आयोजन होता है। वहीं, भूत प्रेत और बुरी शक्तियों को भगाने के लिए अश्लील गालियां दी जाती हैं।</p>
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