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भारत में ही नहीं विदेशों में भी हैं मां के 9 शक्तिपीठ

पी. चंद, शिमला |

दुर्गा सप्तशती के मुताबिक माता सति द्वारा हवन कुंड में देह त्याग करने के बाद भगवान शिव क्रोधित हो उठे और माता को कंधे पर उठाकर यहां-वहां विचरने लगे। ये देख तीनों लोक भयभीत हो गए देवताओं ने भगवान विष्णु के पास जाकर भगवान शिव को सत्ती के देह से छुटकारा दिलाने की प्रार्थना की। तब भगवान् विष्णु ने अपना चक्र चलाकर देवी के शरीर के टुकड़े कर दिए। जिन स्थानों पर ये अंग गिरे बाद में वे सब शक्तिपीठ कहलाए। भारत में ये अधिकतर शक्तिपीठ है। लेकिन 9 शक्तिपीठ भारत के बाहर भी है।

पहला शक्ति पीठ नेपाल के गंडकी में है। गंडकी नदी के उद्गम पर स्थित इस मंदिर में माता सती का दांया गाल गिरा था। यहां देवी को "गंडकी" और शिव को "चक्रपाणी" रूप में पूजा जाता है  गुहेश्वरी शक्तिपीठ भी नेपाल  में है जहां पशुपतिनाथ मंदिर के निकट स्थित गुहेश्वरी मंदिर में माता के दोनों घुटने गिरे थे। यहां शक्ति को "महामाया" और शिव को "कपाल" के रूप में पूजा की जाती हैं।

तीसरा शक्तिपीठ हिंगलाज देवी जो कि  पाकिस्तान में है। पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में हिंगोल नदी के समीप हिंगलाज माता का मंदिर है। यहां माता सती का सिर गिरा था। यहां देवी को "भैरवी" और भगवान शिव को "भीमलोचन" कहा जाता है। इसी रूप की यहाँ पूजा की जाती है।

श्रीलंका में सती माता की पायल गिरी थी। यहां माता "इंद्राणी" और शिव "राक्षसेश्वर" कहलाते हैं।

मानस (तिब्बत) में माता का दाक्षायणी रूप है। तिब्बत के मानसरोवर तट पर स्थित है मानस शक्तिपीठ। यहां देवी की दायीं हथेली गिरी थी। देवी यहां "दाक्षायणी" और शिव "भैरव" रूप में हैं।

सुगंध (बांग्लादेश): सुगंध नदी के तट पर स्थित है उग्रतारा देवी का शक्तिपीठ। यहां देवी की नसिका गिरी थी। देवी को यहां "सुनंदा" और शिव को "˜यम्बक" रूप में पूजा जाता है।
 
करतोया तट (बांग्लादेश): भवानीपुर के पास करतोया तट पर सती माता की बाएं पैर की पायल गिरी थी। यहां कि शक्ति"अपर्णा" और भैरव "वामन" हैं।

 भवानी मंदिर (बांगलादेश): चटगांव से 38 किमी दूर सीताकुंड स्टेशन के पास चंद्रशेखर पर्वत पर भवानी मंदिर है। यहां सती की दायीं भुजा गिरी थी। यहां देवी को "भवानी" और भगवान शिव को "चंद्रशेखर" कहा जाता है।
 
यशोर (बांग्लादेश) : जैसोर शहर में माता सती की बायीं हथेली गिरी थी। यहां सती को "यशोरेश्वरी" व शिव को "चंद्र" कहा जाता है। ये 9 शक्तिपीठ अब विदेशों में कहे जाते है लेकिन एक वक्त पर ये भारत का ही हिस्सा हुआ करते थे।