शारदीय नवरात्रि की तृतीया और चतुर्थी एक ही दिन की है। नवरात्रि का तीसरा दिन भय से मुक्ति और अपार साहस प्राप्त करने का होता है। इस दिन मां के ‘चंद्रघंटा’ स्वरूप की उपासना की जाती है। इनके सिर पर घंटे के आकार का चन्द्रमा है। इसलिए इनको चंद्रघंटा कहा जाता है। इनके दसों हाथों में अस्त्र-शस्त्र हैं और इनकी मुद्रा युद्ध की है। मां चंद्रघंटा तंत्र साधना में मणिपुर चक्र को नियंत्रित करती हैं।
मान्यता है कि शेर पर सवार मां चंद्रघंटा की पूजा करने से भक्तों के कष्ट हमेशा के लिए खत्म हो जाते हैं। इन्हें पूजने से मन को शक्ति और वीरता मिलती है। ज्योतिष में इनका संबंध मंगल नामक ग्रह से होता है।
मां चंद्रघंटा की पूजा में लाल वस्त्र धारण करना श्रेष्ठ होता है। मां को लाल पुष्प, रक्त चन्दन और लाल चुनरी समर्पित करना उत्तम होता है। इनकी पूजा से मणिपुर चक्र मजबूत होता है और भय का नाश होता है। अगर इस दिन की पूजा से कुछ अद्भुत सिद्धियों जैसी अनुभूति होती है, तो उस पर ध्यान न देकर आगे साधना करते रहनी चाहिए। अगर कुंडली में मंगल कमजोर है या मंगल दोष है तो आज की पूजा विशेष परिणाम दे सकती है। पहले मां के मन्त्रों का जाप करें फिर मंगल के मूल मंत्र “ॐ अँ अंगारकाय नमः” का जाप करें।
हर देवी के हर स्वरूप की पूजा में एक अलग प्रकार का भोग चढ़ाया जाता है। कहते हैं भोग देवी मां के प्रति आपके समर्पण का भाव दर्शाता है। मां चंद्रघंटा को दूध या दूध से बनी मिठाई का भोग लगाना चाहिए। प्रसाद चढ़ाने के बाद इसे स्वयं भी ग्रहण करें और दूसरों में बांटें। देवी को ये भोग समर्पित करने से जीवन के सभी दुखों का अंत हो जाता है।