<p>हिमाचल के सिरमौर जिले के गिरिपार क्षेत्र की 125 पंचायतों में बूढ़ी दिवाली की तैयारियां हो चुकी हैं। यहां बूढ़ी दिवाली को ‘मशराली’ के नाम से मनाया जाता है। दिवाली के एक माह बाद अमावस्या को गिरिपार क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली का जश्न हर साल धूमधाम एवं पारंपरिक तरीके के साथ मनाया जाता है। गिरिपार के अतिरिक्त शिमला जिला के कुछ गांव, उत्तराखंड के जौनसार क्षेत्र एवं कुल्लू जिला के निरमंड में भी बूढ़ी दिवाली मनाने की परम्परा है।</p>
<p>ग्रामीण परोकड़िया गीत, विरह गीत भयूरी, रासा, नाटियां, स्वांग के साथ साथ हुड़क नृृत्य करके जश्न मनाते हैं। कुछ क्षेत्रों में बूढ़ी दिवाली के त्यौहार पर बढ़ेचू नृत्य करने की परंपरा भी है जबकि कुछ गांव में अर्ध रात्रि के समय एक समुदाय के लोगों द्वारा बुड़ियात नृत्य करके देव परंपरा का निर्वाह किया जाता है।</p>
<p>बूढ़ी दिवाली के उपलक्ष्य पर ग्रामीण पारंपरिक व्यंजन बनाने के अतिरिक्त आपस में सूखे व्यंजन मूड़ा, चिड़वा, शाकुली, अखरोट वितरित करके दिवाली की शुभकामनाएं देते हैं। स्थानीय ग्रामीण द्वारा हारूल गीतों की ताल पर लोक नृत्य होता है। ग्रामीण इस त्यौहार पर अपनी बेटियों और बहनों को विशेष रूप से आमंत्रित करते हैं।</p>
<p>सदियों से चली आ रही इस परंपरा का आज भी लोग निर्वाह कर रहे है। ऐसा माना जाता है कि बूढ़ी दीवाली को इक्कठे होकर इस तरह से मनाने से बुरी शक्तियों और प्राकृतिक आपदाओं का नाश होता है और गांव में संकट नहीं आता है।</p>
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