सावन शिव का प्रिय महीना है. सभी देवताओं में रूद्र समाहित हैं और सभी देवता रूद्र का ही अवतार है. ब्रह्मा, विष्णु और महेश सभी रूद्र के ही अंश हैं, इसलिए रुद्राभिषेक के द्वारा ऐसा भी माना जाता है कि सभी देवताओं की पूजा अर्चना एक साथ हो जाती है.
सावन में सभी देवताओं की पूजा से व्यक्ति के हर कष्ट दूर होते हैं और हर मनोकामना पूर्ण होती है. सावन के तीसरे सोमवार को बेहद खास माना गया है। इस दिन शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से सभी रुके हुए कामों में आने वाली रूकावटें दूरी होती है.
सावन के तीसरें सोमवार का व्रत 5 अगस्त यानि आज रखा जाएगा. इस दिन भगवान शिव की पूजा करने का विधान है। मान्यता है कि इस दिन उपवास रखने से सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। हिंदू धर्म में सावन महीने को पूजा पाठ के लिए अधिक शुभ माना गया है। और इस दौरान पूरी सृष्टि का संचालन भगवान शिव के हाथों में होता है।
सावन के तीसरे सोमवार यानि आज सुबह ही स्नान कर लें। इसके बाद पूजा स्थान पर सभी पूजन सामग्रियों को एकत्रित कर लें। इसके बाद शुभ मुहूर्त के अनुसार दूध से शिव का अभिषेक करें। घी का दीपक जलाएं। फिर उन्हें चंदन, फूल, बेलपत्र, भांग की पत्तियां और मिठाई चढ़ाएं। इसके बाद धूप-दीप अर्पित करें।
साथ ही शिव चालीसा का पाठ करें। यदि व्रत रखा है, तो सोमवार व्रत कथा का पाठ करें। अंत में भोलेनाथ की आरती करें। आपको ये भी बता दूं कि सावन में शिवजी का कच्चे दूध से अभिषेक किया जाता है, इसलिए सावन सोमवार रखने वाले को दूध का सेवन नहीं करना चाहिए. सावन सोमवार का व्रत खोलते समय लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा, मसालेदार भोजन, बैंगन से युक्त चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए. इससे व्रत का फल नहीं मिलता है.
ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों और घने जंगलों से घिरा हिमाचल प्रदेश जिसे देवभूमि कहा जाता है यहां पर 2000 से भी ज्यादा मंदिर है. वहीं, प्रदेश में कई प्रसिद्ध शिव मंदिर है जहां पर देश-विदेश के लोग माथा टेकने आते है. सबसे पहले मैं आपको तिब्बत किन्नौर सीमा पर स्थित किन्नर कैलाश महादेव के बारे में बताउंगी.
किन्नर कैलाश जिसे मानसरोवर कैलाश के बाद दूसरा स्थान प्राप्त है। किन्नौर कैलाश कल्पा का मोहित करने वाला पर्वत है जो 6500 मीटर ऊंचा है। इसी पर शिवलिंग स्थापित है। बताया जाता है कि किन्नर कैलाश पर्वत दिन में सात बार रंग बदलता है। शिवलिंग के दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। किन्नर कैलाश स्थित शिवलिंग की ऊंचाई 40 चालीस फीट और चौड़ाई 16 फीट है। हिंदुओं के साथ साथ यह बौद्ध धर्म मत वालों के लिए भी आस्था के प्रतीक हैं।
इसी के साथ धौलाधार, पांगी व जांस्कर पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा कैलाश पर्वत मणिमहेश-कैलाश के नाम से प्रसिद्ध है और हजारों वर्षो से श्रद्धालु इस तीर्थ की यात्रा करते आ रहे हैं। मणिमहेश नाम से एक छोटा सा पवित्र सरोवर है जो समुद्र तल से लगभग 13,500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। इसी सरोवर की पूर्व की दिशा में है वह पर्वत जिसे कैलाश कहा जाता है। मणिमहेश-कैलाश क्षेत्र हिमाचल प्रदेश में चम्बा जिला के भरमौर में आता है।
श्रीखंड महादेव हिमाचल के ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क से सटा है। श्रीखंड महादेव के दर्शन के लिए 18570 फीट ऊचाई पर चढ़ना होता है। इस चोटी पर भगवान शिव का वास है। इसके शिवलिंग की ऊंचाई 72 फीट है। यहां तक पहुंचने के लिए सुंदर घाटियों के बीच से एक ट्रैक है। श्रीखण्ड का रास्ता रामपुर बुशैहर से जाता है। यहां से निरमण्ड, उसके बाद बागीपुल बेस कैम्प सिंहगाड से श्रीखंड कैलाश तक कुल 30 कि.मी. के कठिन और ग्लेशियरयुक्त रास्ते को पार करना पडता है.
वहीं, प्रदेश के कुल्लू जिला का पूरा इतिहास बिजली महादेव से जुड़ा हुआ है। कुल्लू शहर में ब्यास और पार्वती नदी के संगम के पास एक ऊंचे पर्वत के ऊपर बिजली महादेव का प्राचीन मंदिर है। पूरी कुल्लू घाटी में ऐसी मान्यता है कि यह घाटी एक विशालकाय सांप का रूप है।
इस सांप का वध भगवान शिव ने किया था। जिस स्थान पर मंदिर है वहां शिवलिंग पर हर बारह साल में भयंकर आकाशीय बिजली गिरती है। बिजली गिरने से मंदिर का शिवलिंग खंडित हो जाता है। और यहां के पुजारी खंडित शिवलिंग के टुकड़े एकत्रित कर मक्खन के साथ इसे जोड़ देते हैं। कुछ ही माह बाद शिवलिंग एक ठोस रूप में परिवर्तित हो जाते हैं।
बैजनाथ महादेव यह मंदिर बैजनाथ में पठानकोट-मंडी नेशनल हाईवे के बिलकुल साथ में स्थित है। बैजनाथ का पुराना नाम कीरग्राम था परन्तु समय के साथ यह मंदिर के प्रसिद्ध होता गया और ग्राम का नाम बैजनाथ पड़ गया. मंदिर के उतर-पश्चिम छोर पर बिनवा नदी, जो की आगे चल कर ब्यास नदी में मिलती है. दशहरा उत्सव, जो परंपरागत रूप से रावण का पुतला जलाने के लिए मनाया जाता है लेकिन बैजनाथ में इसे रावण द्वारा की गई भगवान शिव की तपस्या ओर भक्ति करने के लिए सम्मान के रूप में मनाया जाता है. बैजनाथ के शहर के बारे में एक और दिलचस्प बात यह है कि यहाँ सुनार की दुकान नहीं है।
काठगढ़ महादेव जोकि कांगड़ा जिले के इंदौरा उपमंडल में स्थित है। यह विश्व का एकमात्र मंदिर है जहां शिवलिंग ऐसे स्वरुप में विद्यमान हैं जो दो भागों में बंटे हुए हैं इनके दोनों भागों के बीच का अंतर घटता-बढ़ता रहता है। समर सीजन में यह स्वरूप दो भागों में बंट जाता है और विंटर सीजन में फिर एक रूप धारण कर लेता है। शिव का वह दिव्य लिंग शिवरात्रि को प्रगट हुआ था, इसलिए लोक मान्यता है कि काठगढ महादेव शिवलिंग के दो भाग भी चन्द्रमा की कलाओं के साथ करीब आते और दूर होते हैं। शिवरात्रि का दिन इनका मिलन माना जाता है।
त्रिलोकीनाथ जोकि लाहौल स्पिति जिला के त्रिलोकपुर गाँव में स्थित भगवान शिव का मंदिर है जहां पर त्रिलोकीनाथ के शीश पर महात्मा बुद्ध विराजमान है। यहां छह भुजाओं वाली भगवान त्रिलोकी नाथ की मूर्ति है जिसके सिर पर बौद्ध की आकृति है। बौद्ध त्रिलोकीनाथ की प्रतिमा को अवलोकितेश्वर के रूप में तो हिंदू शिव के रूप में पूजते हैं। यानी हिंदुओं और बौद्धों के लिए यह स्थान साझा आध्यात्मिक स्थल है।
भूतनाथ महादेव का मंदिर छोटी काशी के नाम से विख्यात मंडी ज़िला में ब्यास नदी के किनारे है। इस मंदिर का निर्माण 1527 ई. में राजा अजवेर सेन ने करवाया था। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर को उस काल में बनवाया गया था जब राज्य की राजधानी को मंडी से भिउली में स्थानांतरित कर दिया गया था। मंदिर में स्थापित नंदी बैल की प्रतिमा बुर्ज की ओर देखती प्रतीत होती हे।
सिरमौर व शिमला की सीमा पर करीब 11969 फुट की ऊंचाई पर स्थित श्री शिरगुल महाराज चूड़धार की चोटी पर पूजे जाते हैं। चूड़धार में जहां अब विशालकाय शिव प्रतिमा हैं वहां पर प्राकृतिक शिवलिंग होता था। ऐसा भी कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने अपने हिमाचल प्रवास के दौरान यहां शिव की आराधना के लिए शिवलिंग की स्थापना की थी। चूड़धार पहुंचने के लिए जिला सिरमौर के नौहराधार, शिमला जिला के चौपाल उपमंडल के अंतर्गत आने वाले सराहन से श्रद्धालु पहुंच सकते हैं। सराहन से करीब पांच घंटे का पैदल मार्ग चूड़धार पहुंचने का है जबकि नौहराधार से करीब आठ घंटे का पैदल मार्ग चूड़धार पहुंचने का है।
जिला हमीरपुर के ऐतिहासिक गसोता महादेव शिव मंदिर का खास महत्व है। हजारों साल पुराना शिवलिंग लोगों की आस्था का केंद्र है। देशभर से श्रद्धालु अपनी मनोकामना को पूर्ण करने के लिए गसोता महादेव में शिवलिंग की पूजा करने पहुंचते हैं। गसोता महादेव के पवित्र स्थल का नाम पुराणों में पांडव काल से जुड़ा हुआ है।
देवभूमि हिमाचल में कई शिवालय हैं। हर शिव मंदिर की अपनी मान्यता व एक अलग इतिहास है। जिला कांगड़ा के रक्कड़ उपमंडल में कालीनाथ कालेश्वर महादेव का मंदिर है, इसे मिनी हरिद्वार भी कहा जाता है। यहां भगवान शिव का ऐतिहासिक पांडवकालीन मंदिर है। मान्यता है कि वनवास के दौरान पांडवों ने यहां लंबे समय तक प्रवास किया। इसी दौरान उन्होंने इसका निर्माण किया था। यह शिवलिंग प्रतिवर्ष एक जौ के दाने के बराबर पाताल में धंसता चला जा रहा है।
प्रदेश के सोलन में स्थित शिव के धाम जटोली शिव मंदिर को लेकर श्रद्धालुओं में बड़ी मान्यता है. इस मंदिर की ऊंचाई करीब 111 फीट बताई जाती है. भक्तों में मान्यता है कि पौराणिक काल में भगवान भोलेनाथ यहां कुछ वक्त के लिए प्रवास कर चुके हैं. साल 1950 में स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने यहां जटोली के शिव मंदिर की निर्माण की शुरुआत की थी. काफी वक्त लगा और साल 1974 में यहां नींव रखी गई और संत परमहंस ने 1983 में इसी मंदिर परिसर में समाधि ले ली थी. सावन महीने में इन सब मंदिरों बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते है. और जयकारों से शिव मंदिर गूंज उठते है. प्रदेश में और भी कई मंदिर है जहां सावन के महीने में लोग दर्शन करने के लिए पहुंचते है.