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बैजनाथ के महाकाल मंदिर में शिव ने किया दैत्य जलंधर का वध

पी. चंद, शिमला |

देवभूमि हिमाचल ऐसी पावन धरा हैं जहां के चप्पे-चप्पे पर देवी देवता रमण करते हैं। यहां के ऐतिहासिक देवालय इस पहाड़ी प्रदेश को अलग पहचान दिलाते हैं। ऐसा ही एक मंदिर है जिला कांगड़ा के बैजनाथ से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित महाकाल मंदिर। इस मंदिर के साथ भगवान शिव और दैत्य जलंधर की कथा जुड़ी हुई है। पुराणों के मुताबिक दैत्य जलंधर ने यहां पर घोर तप किया था इसलिए इसे दैत्य जलंधर की तपोभूमि भी कहा जाता है। घोर तप कर भगवान भोलेनाथ को दैत्य ने प्रसन्न कर वर मांगा की काल भी मुझे मार न सके।

शिव से मनचाहा वर प्राप्त कर दैत्य जलंधर ने ऋषि मुनियों को त्रास देना शुरू कर दिया। दैत्य जलंधर के जुल्मों सितम से दुःखी हो ऋषि मुनियों ने भगवान भोलेनाथ से दैत्य जलंधर का संहार करने की गुहार लगाई। इसके बाद भगवान शिव ने महाकाल का रूप इसी स्थान पर दैत्य जलंधर का संहार किया। तभी से भोलेनाथ स्वयं यहां पिंडी रूप में विराजमान हैं। इस पिंडी में जितना भी दूध या पानी चढ़ाओ वह बाहर नही निकलता है बल्कि पिंडी में ही समा जाता है।

समूचे भारत मे महाकाल मंदिर अपनी तरह का रहस्यमयी मंदिर है। जबकि महाकाल का दूसरा मंदिर उज्जैन में है जिनका वर्णन पुराणों में भी मिलता है। महाकाल मंदिर की एक खासियत ओर भी है कि यहां हर दिन घास का गठ्ठा जलाना पड़ता है जिस दिन गलती से भी ये न जले आसपास के क्षेत्र में किसी न किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है। वैसे महाकाल मंदिर में बड़ा शनिधाम भी है जिसकी अलग पहचान है। जहां पर दूर दूर से लोग दुःखों का निवारण करवाने आते हैं।