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सांप के डंसे गुग्गा मंदिर में होते हैं ठीक, यहां है ये प्राचीन मंदिर

मृत्युंजय पुरी |

पालमपुर से लगभग 10 किलोमीटर दूर पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित अरला गांव से मात्र दो किलोमीटर दूर पंचायत सलोह में जहरवीर गुग्गा महाराज का प्राचीन मंदिर है। यह स्थान सर्पदंश और मानसिक व शारीरिक कष्ट से ग्रसित लोगों के ठीक होने की मान्यता के चलते अटूट आस्था का केंद्र है। प्रति वर्ष रक्षाबंधन से जन्माष्टमी तक यहां उत्सव सा माहौल होता है और देश भर से लोग यहां माथा टेकने पहुंचते हैं।

गांव सलोह और कथियाड़ा और आसपास के गांव के लोग रक्षाबंधन से जन्माष्टमी तक नंगे पांव रहते हैं और सोने के लिए भूमि आसन का प्रयोग करते हैं। 10 दिनों तक उपवास में रहते हुए न तो सिर के बाल कटवाते हैं और न ही दाढ़ी बनवाते हैं। मेले के दस दिनों में जहरवीर गुग्गा महाराज के छत्र संग सभी गांवों में ढाई फेरी लगाई जाती है जिसमें बाबा के भक्त नंगे पांव शामिल होते हैं।

यह है मान्यता

ऐसी मान्यता है कि जो लोग भूतप्रेत इत्यादि के साये तथा अन्य बीमारियों से पीड़ित होते हैं, मंदिर में माथा टेकने और दस दिनों तक यहां रहकर गुग्गा मंदिर के भीतर या बाहर परिक्रमा कर 11वें दिन ठीक होकर घरों को जाते हैं। आपे से बिल्कुल बाहर लोगों को मंदिर के प्रांगण में स्थित प्राचीन अलिया नामक पेड़ से बांधने से लोग ठीक होकर कुछ ही घंटों में मंदिर की परिक्रमा करने लगते हैं। गुग्गा मंदिर में सर्पदंश के पीड़ित भी ठीक होते हैं। गुग्गा को सांपों का ईष्टदेव माना गया है। कहीं भी किसी को सर्पदंश होने पर मंदिर में रखा ढोल अपने आप बजने लगता था और पीड़ित व्यक्ति मंदिर में आकर बिल्कुल ठीक हो जाता था।

राजस्थान के पुफू ने बनाया था मंदिर

मंदिर का निर्माण संवत 1898 में पुजारी पुफू राम ने करवाया था। राजस्थान के गांव दुढेरा के रहने वाले पुफू राम को सपने में जहरवीर गुग्गा देवता ने साक्षात दर्शन देकर कहा कि आप मेरा मंदिर कांगड़ा जिला के सलोह गांव में बनाएं, ताकि वहां पर दीन दुखियों की सहायता कर सकें। पुफू राम ने सलोह में बहुत बड़ा मंदिर बनवाया और आज पुफू राम के पौत्र इस मंदिर के पुजारी बनकर जनता की सेवा कर रहे हैं।