जानिए, क्यों मनाया जाता है सायर या सैर का पर्व और क्या है इसका महत्व…

<p>17 सितम्बर यानी अश्विन महीने की सक्रांति को कागड़ा, मण्डी, हमीरपुर , बिलासपुर और सोलन सहित अन्य कुछ जिलों में सैर या सायर का त्यौहार काफी धूमधाम से मनाया जाता है।</p>

<p>सैर उत्सव या सायर उत्सव भी इन्हीं त्यौहारों में से एक है। सैर का त्यौहार (सायर त्यौहार )अश्विन महीने की सक्रांति को मनाई जाती है। वास्तव में यह त्यौहार वर्षा ऋतु के खत्म होने और शरद् ऋतु के आगाज के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।</p>

<p>इस समय खरीफ की फसलें पक जाती हैं और काटने का समय होता है, तो भगवान को धन्यवाद करने के लिए यह त्यौहार मनाते हैं। सैर के बाद ही खरीफ की फसलों की कटाई की जाती है। इस दिन &ldquo;सैरी माता&rdquo; को फसलों का अंश और मौसमी फल चढाए जाते हैं और साथ ही राखियाँ भी उतार कर सैरी माता को चढ़ाई जाती हैं।</p>

<p>हिमाचल की कथाओ के अनुसार लोहड़ी और सैर दो सगी बहने थी , सैर की शादी गरीब घर में हुई , इसलिए उसे सितेम्बर महीने में मनाते है और उसके पकवान स्वादिस्ट तो होते है लेकिन अधिक महंगे नही होते , जबकि लोहड़ी की शादी अमीर घर में हुई थी , इसलिए शायद देसी घी ,चिवड़ा , मूंगफली ,खिचड़ी आदि के कई मिठाईयों के साथ इस त्यौहार को खूब धूमधाम से मनाया जाता है जिसकी शुरुआत एक महिना पहले ही लुकड़ीयों के साथ हो जाती है।</p>

<p>सायर के त्योहार के दौरान अखरोट खेलने की परंपरा ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी है। गली चौराहे या फिर घर के आंगन के कोने पर इस खेल को खेला जाता है। इसमें खिलाड़ी जमीन पर बिखरे अखरोटों को दूर से निशाना लगाते हैं। अगर निशाना सही लगे तो अखरोट निशाना लगाने वाले के होते हैं। इस तरह यह खेल बच्चों, बूढ़े और नौजवानों में खासा लोकप्रिय है।</p>

<p>सायर का त्योहार बरसात की समाप्ति का भी सूचक माना जाता है। इस दिन भादों महीने का अंत होता है। भादों महीने के दौरान देवी-देवता डायनों से युद्ध लड़ने देवालयों से चले जाते हैं। वे सायर के दिन वापस अपने देवालयों में आ जाते हैं। इस दिन ग्रामीण क्षेत्रों के देवालयों में देवी-देवता के गूर देव खेल के माध्यम से लोगों को देव-डायन युद्ध का हाल बताते हैं और यह भी बताते हैं कि इसमें किस पक्ष की विजय हुई है। वहीं बरसात के मौसम में किस घर के प्राणी पर बुरी आत्माओं का साया पड़ा है।</p>

<p>देवता का गूर इसके उपचार के बारे में भी बताता है। सायर के दिन ही नव दुल्हनें मायके से ससुराल लौट आती हैं। ऐसी मान्यता है कि भादों महीने के दौरान विवाह के पहले साल दुल्हन सास का मुंह नहीं देखती है। ऐसे में वह एक महीने के लिए अपने मायके चली जाती हैं।</p>

Samachar First

Recent Posts

एनसीसी स्थापना दिवस पर मंडी में रक्तदान शिविर, 50 कैडेटों ने दिखाया उत्साह

NCC Raising Day Blood Donation Camp: एनसीसी एयर विंग और आर्मी विंग ने रविवार को…

4 minutes ago

यहां पढ़ने वाले पिछले 65 साल में हर क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ रहे:धर्माणी

Sundernagar Polytechnic Alumni Meet: मंडी जिले के सुंदरनगर स्थित राजकीय बहुतकनीकी संस्थान में रविवार को…

8 minutes ago

हिमाचल में सहकारिता क्षेत्र में महिलाओं के आरक्षण पर विचार कर रही सरकार: मुकेश अग्निहोत्री

Himachal Cooperative Sector Development: मंडी जिले के तरोट गांव में आयोजित हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी…

1 hour ago

जीवन में अनुशासन और समय का सदुपयोग जरूरी: पंकज शर्मा

NSS Camp Day 6 Highlights.: धर्मशाला के राजकीय छात्र वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला में चल रहे…

1 hour ago

राधास्वामी सत्संग अस्पताल की भूमि के लिए ऑर्डिनेंस लाएगी सुक्खू सरकार

Bhota Hospital Land Transfer: हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार राधास्वामी सत्संग व्यास अस्पताल भोटा की…

3 hours ago

सामाजिक सरोकार में अग्रणी मंडी साक्षरता समिति को मिला विशेष सम्मान

Mandi Literacy Committee: हिमाचल ज्ञान विज्ञान समिति ने शनिवार को शिमला स्थित हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय…

7 hours ago