शिमला के जुब्बल कोटखाई विधानसभा क्षेत्र में मां हाटेश्वरी का पुरातन मंदिर है. यह शिमला से लगभग 110 किमी की दूरी पर समुद्रतल से 1370 मीटर की ऊंचाई पर पब्बर नदी के किनारे पर बना है.
माना जाता है कि मां हाटेश्वरी मंदिर का निर्माण 700-800 वर्ष पहले हुआ था. मंदिर के साथ लगते सुनपुर के टीले पर कभी विराट नगरी थी. जहां पर पांडवों ने अपने गुप्त वास के कई वर्ष व्यतीत किए. माता हाटेश्वरी का मंदिर विशकुल्टी, राईनाला और पब्बर नदी के संगम पर सोनपुरी पहाड़ी पर स्थित है.
पहले यह मंदिर शिखराकार नागर शैली में बना हुआ था. लेकिन बाद में इसे पहाड़ी शैली के रूप में परिवर्तित कर दिया. मां हाटकोटी मंदिर के गर्भगृह में महिषासुर मर्दिनी का स्वरूप है. मां की प्रतिमा किस धातु की है. इसका भी पता लगाना मुश्किल है.
मां हाटकोटी मंदिर के बारे में मान्यता है कि सैंकड़ों वर्ष पहले एक ब्राह्माण परिवार में दो सगी बहनें थीं, जिन्होंने अल्प आयु में ही सन्यास ले लिया और घर से भक्ति की लो जलाने निकल पड़ी. उन्होंने संकल्प लिया कि वे गांव-गांव जाकर लोगों के दुख दर्द सुनेंगी और उसके निवारण के लिए उपाय बताएंगी.
दूसरी बहन हाटकोटी गांव पहुंची जहां मंदिर स्थित है उसने यहां एक खेत में आसन लगाकर साधना शुरू कर दी व वहीं अंतर्ध्यान हो गई. कहा जाता है कि जिस स्थान कन्या बैठी थी वहां एक पत्थर की प्रतिमा निकल पड़ी.
इस आलौकिक चमत्कार से लोगों की उस कन्या के प्रति श्रद्धा बढ़ी और उन्होंने इस घटना की पूरी जानकारी तत्कालीन जुब्बबल रियासत के राजा को दी. जब राजा ने इस घटना को सुना तो वह तत्काल पैदल चलकर यहां पहुंचा और इच्छा प्रकट की कि वह प्रतिमा के चरणों में सोना चढ़ाएगा जैसे ही सोने के लिए प्रतिमा के आगे कुछ खुदाई की तो वह दूध से भर गया.
इस तरह राजा जुब्बल ने यहां पर मंदिर बनाने का निश्चय ले लिया. लोगों ने उस कन्या को देवी रूप माना और गांव के नाम से इसे ‘हाटेश्वरी देवी’ कहा जाने लगा.
हाटेश्वरी देवी’ मंदिर में लोगों की गूढ़ आस्था हैं यहां दूर- दूर से श्रद्धालु मां के दर्शन करने आते हैं. अब हाटेश्वरी माता मंदिर में सौंदर्यीकरण का कार्य किया जाना है. जिसकी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं.
सौंदर्यीकरण की समीक्षा हेतु कल ही SDM जुब्बल, XEN Tourism Scapin, XEN Land Scaping व मंदिर ट्रस्ट सदस्यों ने मंदिर परिसर में पहुंचकर सौंदर्यीकरण बारे विस्तृत चर्चा की.