देश दुनिया में आज ‘मैगी’ अलग पहचान रखती है। अगर किसी को हल्की भूख लगी हो और जल्दी में किसी को कुछ न सूझे… तो मैगी एक ऐसा साधन है जिसे सिर्फ मसाला डाल कर कुछ ही मिनटों में तैयार किया जा सकता है। यहां तक इसका टेस्ट भी ऐसा रहता है जिससे लोग निराश नहीं होते। बदलते वक्त के साथ आज के दौर में मैगी हर घर के किचन में पहुंच चुकी है। और तो और मासिक राशन के साथ-साथ मैगी भी एक जरूरी विकल्प नज़र आने लगा है।
लेकिन इसी बीच क्या आप जानते हैं कि आज के दौर में मैगी की क्या ख़पत है। मीडिया रिपोर्ट का दावा है कि हर दिन देश दुनिया में रोजाना करीब 120 करोड़ मैगी के पैकेट खाए जाते हैं। जितना वक्त आप इस ख़बर को पढ़ने में लगा रहे हैं उतने वक़्त में करीब 2 हजार पैकेट खुल चुके होते हैं। अकेले भारत देश में भी मैगी की ख़पत लाखों करोड़ों की आंकी जाती है।
कैसे शुरू हुई थी मैगी…
स्विट्जरलैंड में रहने वाले जूलियस मैगी ने साल 1872 में अपने नाम पर कंपनी का नाम Maggi रखा था। जानकार बताते हैं कि स्विट्जरलैंड में वह इंडस्ट्रियल क्रांति का दौर था। उस वक्त महिलाओं को लंबे समय तक फैक्ट्रियों में काम करने के बाद घर जाकर कम समय में खाना बनाना होता था। ऐसे मुश्किल समय में स्विस पब्लिक वेलफेयर सोसायटी ने जूलियस मैगी की मदद ली थी,और इस तरह मैगी का जन्म मजबूरी में हुआ। इस दौरान जूलियस ने प्रोडक्ट का नाम अपने सरनेम पर रख दिया। वैसे उनका पूरा नाम जूलियस माइकल जोहानस मैगी था। साल 1897 में सबसे पहले जर्मनी में मैगी नूडल्स पेश किया गया था।
कई खट्टे मिठे अनुभवों के बाद साल 1947 में ‘Maggi’ ने स्विट्जरलैंड की कंपनी Nestle के साथ विलय किया था। जिसके बाद Nestle इंडिया लिमिटेड Maggi को 1984 में भारत लेकर आई थी। उस वक्त किसी ने नहीं सोचा था कि मैगी करोड़ों लोगों की पसंद बन जाएगी। लेकिन ये ममुकिन हुआ। मिनटों में बनने वाला प्रोडक्ट सभी को पसंद आया। भारत में कंपनी ने नूडल्स के साथ बाजार में कदम रखा। हालांकि, यहां दूसरे देशों जैसा चमत्कार देखने को नहीं मिला, लेकिन समय के साथ लोगों की लाइफस्टाइल में चेंज आने लगा। 1999 के बाद 2 मिनट में तैयार होने वाली मैगी हर घर के किचन की जरूरत बनने लगी।
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